#OpenPoetry बेटी के सर पे प्यारी सी रिदा अच्छी लगत

"#OpenPoetry बेटी के सर पे प्यारी सी रिदा अच्छी लगती है बराए सेहत हमें कड़वी दवा अच्छी लगती है ईद का दिन, छोटा सा पर्स और प्यारा वो शरारा इतरा कर ईदी रखने की अदा अच्छी लगती है ये खेलने की उम्र है अभी वो वक़्त कुछ दूर है नन्हे हाथों पर मगर ये हिना अच्छी लगती है रात के तीसरे पहर सबको नींद से जगा कर बासी रोटी और दूध की ग़िज़ा अच्छी लगती है दिन भर के किस्से और झूठी सच्ची कहानियाँ कहानियों की वो शहज़ादी सदा अच्छी लगती है अक्सर यूँही हम रूठ कर बैठ जाते है क्योंकि तुतली ज़ुबा से माफ़ी की फुगा अच्छी लगती है दुआ में छोटे छोटे हाथ और वो मासूम फरयाद अली को बस ख़ुदा की ये अता अच्छी लगती है"

 #OpenPoetry बेटी के सर पे प्यारी सी रिदा अच्छी लगती है
बराए सेहत हमें कड़वी दवा अच्छी लगती है

ईद का दिन, छोटा सा पर्स और प्यारा वो शरारा
इतरा कर ईदी   रखने की अदा अच्छी लगती है

ये खेलने की  उम्र है अभी  वो वक़्त कुछ दूर है
नन्हे हाथों पर   मगर ये हिना  अच्छी लगती  है

रात के  तीसरे  पहर सबको  नींद से जगा कर
बासी रोटी और दूध की ग़िज़ा अच्छी लगती  है

दिन भर के किस्से  और  झूठी सच्ची कहानियाँ
कहानियों की वो शहज़ादी सदा अच्छी लगती है

अक्सर यूँही हम रूठ कर बैठ जाते है क्योंकि
तुतली ज़ुबा से माफ़ी की फुगा अच्छी लगती है

दुआ में छोटे छोटे हाथ और वो मासूम फरयाद
अली को बस ख़ुदा की ये अता अच्छी लगती है

#OpenPoetry बेटी के सर पे प्यारी सी रिदा अच्छी लगती है बराए सेहत हमें कड़वी दवा अच्छी लगती है ईद का दिन, छोटा सा पर्स और प्यारा वो शरारा इतरा कर ईदी रखने की अदा अच्छी लगती है ये खेलने की उम्र है अभी वो वक़्त कुछ दूर है नन्हे हाथों पर मगर ये हिना अच्छी लगती है रात के तीसरे पहर सबको नींद से जगा कर बासी रोटी और दूध की ग़िज़ा अच्छी लगती है दिन भर के किस्से और झूठी सच्ची कहानियाँ कहानियों की वो शहज़ादी सदा अच्छी लगती है अक्सर यूँही हम रूठ कर बैठ जाते है क्योंकि तुतली ज़ुबा से माफ़ी की फुगा अच्छी लगती है दुआ में छोटे छोटे हाथ और वो मासूम फरयाद अली को बस ख़ुदा की ये अता अच्छी लगती है

मेरी प्यारी बेटी
#OpenPoetry

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