मत रौंदो मुझे
मैं फूल हूँ गुलाब का ।
महकते आँगन का,
प्यार के इजहार का ।
जरिया हूँ मैं,
मत रौंदो मुझे ।
मत रौंदो मुझे,
मैं फूल हूँ गुलाब का ।
जुडा था अपने परिवार से,
आँधी ने बिखेर दिया ।
वक्त की मार ने,
परिवार से जुदा कर दिया ।
मेरी एक –एक बालक समान पत्ती,
का नहीं कोई ठिकाना ।
सब देखते मुझे ऐसे,
जैसे हूँ कोई अनजाना ।
जुड़ा था जब परिवार से,
तो गुलदस्ते में सजा दिया ।
जुदा होते ही परिवार से,
ठोकर से उड़ा दिया ।
पड़ी हैं मेरी पत्तियां जहाँ – तहां,
कोई रौंद कर चला गया ।
मैं समेट भी न सका,
कहता ही रह गया ।
मत रौंदो मुझे,
मैं फूल हूँ गुलाब का ।
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देवेश दीक्षित
©Devesh Dixit
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मत रौंदो मुझे
मैं फूल हूँ गुलाब का ।
महकते आँगन का,
प्यार के इजहार का ।
जरिया हूँ मैं,