आईना जो कहे
आईना जो कहे, वो स्वीकार नहीं किसी को,
अगर कहे वो झूठ, तो मुस्कान दे सभी को।
पर ऐसा होना कदापि संभव नहीं यहाँ,
ये तो वो सच्चाई है, जो पैगाम दे सभी को।
निहारते अकसर, जिसे देखकर सभी,
दिखा दे अगर वही तो बद्सूरत कभी।
फेंक आते उसे कहीं बेगानों सा,
और नया आईना फिर ले आते तभी।
दिखना है सुंदर यह चाहते भी सभी,
पर कहाँ अंदर खुद के झाँकते कभी।
द्वेष भावना ही देखो मन में पाले,
ऊपर से भरोसे का भी गला घोंटते तभी।
आईना ये वो है जो, चेहरे सबको दिखाता है,
किसी को साफ, किसी को भद्दा दिखाता है।
बुरा न मानना कभी, ये फितरत है इसकी,
टुकड़ों में बंटकर ही, ये तब दरार दिखाता है।
जब तक है सलामत, तब तक एक दिखाता है,
हो जाते जब टुकड़े इसके, कई रूप दिखाता है।
छोड़ कर उसे तब सभी आगे बढ़ जाते ऐसे,
जैसे की वो जिंदगी की उन्हें सीख सिखाता है।
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देवेश दीक्षित
©Devesh Dixit
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आईना जो कहे
आईना जो कहे, वो स्वीकार नहीं किसी को,
अगर कहे वो झूठ, तो मुस्कान दे सभी को।
पर ऐसा होना कदापि संभव नहीं यहाँ,
ये तो वो सच्चाई है, जो पैगाम दे सभी को।