White दिन दिन करते करते ये उम्र गुज़र रही है, बीतत | हिंदी कविता

"White दिन दिन करते करते ये उम्र गुज़र रही है, बीतते दिनों की यादे मन की गुल्लक में सिमट रही है, कभी कभी कोई पुरानी याद जब, झाक लेती है गुल्लक से बाहर तब, विस्मृत से कुछ चहरे, धुंधले कुछ पल, छूटी हुई राहें, गुजरे हुए वक्त, ले आते है फिर उम्र के बीते पड़ाव पर, जो हम छोड़ आए थे पीछे, बढ़ते उम्र की जिम्मेदारियों के संग, अंतर्मन जैसे गुम जाता है उन यादों में, तभी मस्तिष्क फिर खट-खट्टाता है द्वार मन के, और ले आता है भूत से वर्तमान में, मैं भी एक दिन याद बनाना चाहूंगा, और रहना चाहूंगा यादों के साथ, तब तक लड़ता रहूंगा, मन और मस्तिष्क की लड़ाई स्मृतियों के संग.... ©Ajay Chaurasiya"

 White दिन दिन करते करते ये उम्र गुज़र रही है,
बीतते दिनों की यादे मन की गुल्लक में सिमट रही है,
कभी कभी कोई पुरानी याद जब,
झाक लेती है गुल्लक से बाहर तब,
विस्मृत से कुछ चहरे, धुंधले कुछ पल,
छूटी हुई राहें, गुजरे हुए वक्त,
ले आते है फिर उम्र के बीते पड़ाव पर,
जो हम छोड़ आए थे पीछे,
बढ़ते उम्र की जिम्मेदारियों के संग,
अंतर्मन जैसे गुम जाता है उन यादों में,
तभी मस्तिष्क फिर खट-खट्टाता है द्वार मन के,
और ले आता है भूत से वर्तमान में,
मैं भी एक दिन याद बनाना चाहूंगा,
और रहना चाहूंगा यादों के साथ,
तब तक लड़ता रहूंगा,
मन और मस्तिष्क की लड़ाई स्मृतियों के संग....

©Ajay Chaurasiya

White दिन दिन करते करते ये उम्र गुज़र रही है, बीतते दिनों की यादे मन की गुल्लक में सिमट रही है, कभी कभी कोई पुरानी याद जब, झाक लेती है गुल्लक से बाहर तब, विस्मृत से कुछ चहरे, धुंधले कुछ पल, छूटी हुई राहें, गुजरे हुए वक्त, ले आते है फिर उम्र के बीते पड़ाव पर, जो हम छोड़ आए थे पीछे, बढ़ते उम्र की जिम्मेदारियों के संग, अंतर्मन जैसे गुम जाता है उन यादों में, तभी मस्तिष्क फिर खट-खट्टाता है द्वार मन के, और ले आता है भूत से वर्तमान में, मैं भी एक दिन याद बनाना चाहूंगा, और रहना चाहूंगा यादों के साथ, तब तक लड़ता रहूंगा, मन और मस्तिष्क की लड़ाई स्मृतियों के संग.... ©Ajay Chaurasiya

#मै और याद...

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