कभी जो तुम्हारे बालों पर तारिफ लिख दूं, तो शायद अ | हिंदी कविता

"कभी जो तुम्हारे बालों पर तारिफ लिख दूं, तो शायद अच्छा लगे तुम्हें । कभी जो तुम्हारे मन को शब्दों से घायल कर दूं, तो शायद वो भी अच्छा लगे तुम्हें । इस शायद में न जाने कितनी गुस्ताखी छिपी है कभी जो मैं गुस्ताखी कर दूं, तो शायद मेरा गुस्ताख हो जाना अच्छा लगे तुम्हें। ©Poonam Singh"

 कभी जो तुम्हारे बालों पर तारिफ लिख दूं,
 तो शायद अच्छा लगे तुम्हें ।

कभी जो तुम्हारे मन को शब्दों से घायल कर दूं,
 तो शायद वो भी अच्छा लगे तुम्हें ।

इस शायद में न जाने कितनी गुस्ताखी छिपी है 
कभी जो मैं गुस्ताखी कर दूं,
 तो शायद मेरा गुस्ताख हो जाना अच्छा लगे तुम्हें।

©Poonam Singh

कभी जो तुम्हारे बालों पर तारिफ लिख दूं, तो शायद अच्छा लगे तुम्हें । कभी जो तुम्हारे मन को शब्दों से घायल कर दूं, तो शायद वो भी अच्छा लगे तुम्हें । इस शायद में न जाने कितनी गुस्ताखी छिपी है कभी जो मैं गुस्ताखी कर दूं, तो शायद मेरा गुस्ताख हो जाना अच्छा लगे तुम्हें। ©Poonam Singh

कभी जो तुम्हारे बालों पर तारिफ लिख दूं, तो शायद अच्छा लगे तुम्हें ।

कभी जो तुम्हारे मन को शब्दों से घायल कर दूं, तो शायद वो भी अच्छा लगे तुम्हें ।

इस शायद में न जाने कितनी गुस्ताखी छिपी है
कभी जो मैं गुस्ताखी कर दूं, तो शायद मेरा गुस्ताख हो जाना अच्छा लगे तुम्हें।

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