"बदन में दर्द का ये सिलसिला बताता है।
तुम्हारे ख्वाब में कोई तो मिलने आता है।।
तुम्हारे सुर्ख लवों पे कहीं उदासी है।
जुबान कह रही कुछ चेहरा कुछ बताता है।।
इसी जहान के वासिंदे हैं न हम दोनों भी।
इसी जहान में तू छोड़ के क्यों जाता है।।
ये मेरी बेखुदी ये फांके ये रुसवाई।
फकत यही मिरे हिस्से में क्यों आता है।।
किसी को होना हो निर्भय तो होके देखे भी।
है कौन कौन जो अपनी कमी बताता है।।
©निर्भय चौहान
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