मन मोरे उस ओर चला चल
जिधर की आज बयार चली
इस नगर न उस नगर
मिलेंगे साजन उसी डगर
न चाहूँ हीरा मोती
सोना चाँदी माँगू न
न ताकूँ बाट भोर में
ये रैन (रात) सूनी जागूँ न
दो जहाॅं और
चार दिशा की बातें छोड़ो
डालो नाविक फेरा
ये नौका मोडो
करूँ सबर न, अब पल भर
इस नगर न उस नगर
मिलेंगे साजन उसी डगर।
(साजन =Divine)
©Krishnaa Harish
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