आंखों की हकीकत से तुम वाकिफ नहीं शायद तभी तो तुम्ह | हिंदी Love

"आंखों की हकीकत से तुम वाकिफ नहीं शायद तभी तो तुम्हें मेरा शहर पुराना नजर आता है | जहां मंजर थे वहां खंजर भी थे साथ चलने का हुनर तुम्हें कहां आता है | जो लगा रखी है बातों की जड़ी तुमने उसमें भी झूठ कहा नजर आता है | अनबन थी तेरे मेरे दरमियां फिर इसमें तीसरा क्यों नजर आता है | तुम जैसे फरिश्तों से बचाए हमें खुदा फरिश्ता भी शर्म के मारे झुका जाता है | ©Chetan Verma"

 आंखों की हकीकत से तुम वाकिफ नहीं शायद
तभी तो तुम्हें मेरा शहर पुराना नजर आता है | 

जहां मंजर थे वहां खंजर भी थे
साथ चलने का हुनर तुम्हें कहां आता है | 

जो लगा रखी है बातों की जड़ी तुमने
उसमें भी झूठ कहा नजर आता है | 

अनबन थी तेरे मेरे दरमियां
फिर इसमें तीसरा क्यों नजर आता है | 

तुम जैसे फरिश्तों से बचाए हमें खुदा 
फरिश्ता भी शर्म के मारे झुका जाता है |

©Chetan Verma

आंखों की हकीकत से तुम वाकिफ नहीं शायद तभी तो तुम्हें मेरा शहर पुराना नजर आता है | जहां मंजर थे वहां खंजर भी थे साथ चलने का हुनर तुम्हें कहां आता है | जो लगा रखी है बातों की जड़ी तुमने उसमें भी झूठ कहा नजर आता है | अनबन थी तेरे मेरे दरमियां फिर इसमें तीसरा क्यों नजर आता है | तुम जैसे फरिश्तों से बचाए हमें खुदा फरिश्ता भी शर्म के मारे झुका जाता है | ©Chetan Verma

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