हमारी वो पहली मुलाक़ात आज भी याद है मुझे गर्मी का अ | हिंदी कविता

"हमारी वो पहली मुलाक़ात आज भी याद है मुझे गर्मी का अलसाया मौसम और संध्या का समय छत की ओट से तुम्हारा मुझे छुपकर देखना मैंने भी तुम्हें देख लिया था और मैंने शर्म से अपनी दृष्टि झुका ली थी लेकिन तुम्हारा यूं अनवरत देखना मुझे भी प्रेम पाश में बांधे जा रहा था मैंने भी पढ़ लिया था तुम्हारे प्रेम की भाषा तुम्हारी आँखों में और मन ही मन सहजता से स्वीकार भी कर लिया था तुम्हें आज हम जीवन भर के लिए साथ हैं लेकिन आज भी वो पहली मुलाक़ात स्मृति में है ©Richa Dhar"

 हमारी वो पहली मुलाक़ात
आज भी याद है मुझे
गर्मी का अलसाया मौसम और संध्या का समय
छत की ओट से तुम्हारा मुझे छुपकर देखना
मैंने भी तुम्हें देख लिया था
और मैंने शर्म से अपनी दृष्टि झुका ली थी
लेकिन तुम्हारा यूं अनवरत देखना
मुझे भी प्रेम पाश में बांधे जा रहा था
मैंने भी पढ़ लिया था तुम्हारे प्रेम की भाषा तुम्हारी आँखों में
और मन ही मन सहजता से स्वीकार भी कर लिया था तुम्हें
आज हम जीवन भर के लिए साथ हैं
लेकिन आज भी वो पहली मुलाक़ात स्मृति में है

©Richa Dhar

हमारी वो पहली मुलाक़ात आज भी याद है मुझे गर्मी का अलसाया मौसम और संध्या का समय छत की ओट से तुम्हारा मुझे छुपकर देखना मैंने भी तुम्हें देख लिया था और मैंने शर्म से अपनी दृष्टि झुका ली थी लेकिन तुम्हारा यूं अनवरत देखना मुझे भी प्रेम पाश में बांधे जा रहा था मैंने भी पढ़ लिया था तुम्हारे प्रेम की भाषा तुम्हारी आँखों में और मन ही मन सहजता से स्वीकार भी कर लिया था तुम्हें आज हम जीवन भर के लिए साथ हैं लेकिन आज भी वो पहली मुलाक़ात स्मृति में है ©Richa Dhar

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