अब हम सर को उठाने निकले हैं हाँ हम रेगिस्ताँ में | हिंदी कविता

"अब हम सर को उठाने निकले हैं हाँ हम रेगिस्ताँ में दरिया बहाने निकले हैं तू देख और ज़ी भरके हँस, जो तू सोच भी ना सका हम उस मुकाँ को पाने निकले हैं हाँ हम अब सर को उठाने निकले हैं अनेकों संकटों से घिर रहा है ये समा हम इस सेवा में हाथ बटाने निकले हैं हाँ अब हम सर को उठाने निकले हैं.."

 अब हम सर को उठाने निकले हैं 
हाँ हम रेगिस्ताँ में दरिया बहाने निकले हैं 
तू देख और ज़ी भरके हँस, जो तू सोच भी ना सका 
हम उस मुकाँ को पाने निकले हैं 
 
हाँ हम अब सर को उठाने निकले हैं 
अनेकों संकटों से घिर रहा है ये समा
हम इस सेवा में हाथ बटाने निकले हैं 
हाँ अब हम सर को उठाने निकले हैं..

अब हम सर को उठाने निकले हैं हाँ हम रेगिस्ताँ में दरिया बहाने निकले हैं तू देख और ज़ी भरके हँस, जो तू सोच भी ना सका हम उस मुकाँ को पाने निकले हैं हाँ हम अब सर को उठाने निकले हैं अनेकों संकटों से घिर रहा है ये समा हम इस सेवा में हाथ बटाने निकले हैं हाँ अब हम सर को उठाने निकले हैं..

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