तुम सफर में मिले, हमसफ़र हो गए, इस गुमशुदा दिल के, | हिंदी कविता

"तुम सफर में मिले, हमसफ़र हो गए, इस गुमशुदा दिल के, रहबर हो गए.. नयनों में कोहरा, छाया हुआ था, धुंधलाई नजर के, नजर हो गए.. उल्फ़त में, खिलाड़ी हारा हुआ था, संग जो मिला तो, जादूगर हो गए.. अरमानों पर गर्दा, जमा हुआ था, सुनकर तुझे, सुभग मनोहर हो गए.. बेचैन, बेकल, मैं उलझा हुआ था, मिले तुम तो, मकान के घर हो गए ! डॉ आनंद दाधीच 'दधीचि' ©Anand Dadhich"

 तुम सफर में मिले, हमसफ़र हो गए,
इस गुमशुदा दिल के, रहबर हो गए..

नयनों में कोहरा, छाया हुआ था,
धुंधलाई नजर के, नजर हो गए..

उल्फ़त में, खिलाड़ी हारा हुआ था,
संग जो मिला तो, जादूगर हो गए..

अरमानों पर गर्दा, जमा हुआ था,
सुनकर तुझे, सुभग मनोहर हो गए..

बेचैन, बेकल, मैं उलझा हुआ था,
मिले तुम तो, मकान के घर हो गए !

डॉ आनंद दाधीच 'दधीचि'

©Anand Dadhich

तुम सफर में मिले, हमसफ़र हो गए, इस गुमशुदा दिल के, रहबर हो गए.. नयनों में कोहरा, छाया हुआ था, धुंधलाई नजर के, नजर हो गए.. उल्फ़त में, खिलाड़ी हारा हुआ था, संग जो मिला तो, जादूगर हो गए.. अरमानों पर गर्दा, जमा हुआ था, सुनकर तुझे, सुभग मनोहर हो गए.. बेचैन, बेकल, मैं उलझा हुआ था, मिले तुम तो, मकान के घर हो गए ! डॉ आनंद दाधीच 'दधीचि' ©Anand Dadhich

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