प्रकृति से प्यार करो" कहीं कबूतर, कहीं कौआ, कहीं | हिंदी Love

""प्रकृति से प्यार करो" कहीं कबूतर, कहीं कौआ, कहीं चिड़िया, ना जाने कौन-कौन से पक्षी मर रहे हैं। ये इंसानों का किया धरा है, जो अब पक्षी भुगत रहे हैं। नितदिन प्रकृति का नाश कर रहे हैं, अपनी मनमानी की खातिर मौत से पहले मौत को दावत दे रहे हैं। आने वाली पीढ़ी और कमजोर होगी, अगर इसी तरह प्रकृति कमजोर होगी। अब भी वक्त है शर्म कर लो सुधर जाओ, वरना नई बीमारियों को न्यौता देते जाओ। एक पौधा हर कोई जन्मदिन पर लगाए, उसकी देख-रेख कर प्रकृति को बचाए। ©अनूप'बसर'"

 "प्रकृति से प्यार करो"
कहीं कबूतर, कहीं कौआ, कहीं चिड़िया,
ना जाने कौन-कौन से पक्षी मर रहे हैं।

ये इंसानों का किया धरा है,
जो अब पक्षी भुगत रहे हैं।

नितदिन प्रकृति का नाश कर रहे हैं,
अपनी मनमानी की खातिर 
मौत से पहले मौत को दावत दे रहे हैं।

आने वाली पीढ़ी और कमजोर होगी,
अगर इसी तरह प्रकृति कमजोर होगी।

अब भी वक्त है शर्म कर लो सुधर जाओ,
वरना नई बीमारियों को न्यौता देते जाओ।

एक पौधा हर कोई जन्मदिन पर लगाए,
उसकी देख-रेख कर प्रकृति को बचाए।

©अनूप'बसर'

"प्रकृति से प्यार करो" कहीं कबूतर, कहीं कौआ, कहीं चिड़िया, ना जाने कौन-कौन से पक्षी मर रहे हैं। ये इंसानों का किया धरा है, जो अब पक्षी भुगत रहे हैं। नितदिन प्रकृति का नाश कर रहे हैं, अपनी मनमानी की खातिर मौत से पहले मौत को दावत दे रहे हैं। आने वाली पीढ़ी और कमजोर होगी, अगर इसी तरह प्रकृति कमजोर होगी। अब भी वक्त है शर्म कर लो सुधर जाओ, वरना नई बीमारियों को न्यौता देते जाओ। एक पौधा हर कोई जन्मदिन पर लगाए, उसकी देख-रेख कर प्रकृति को बचाए। ©अनूप'बसर'

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