White देकर मुझको दो अठन्नी
निहारती मन भर मेरी मुस्कान चवन्नी
ले आता मैं फिर चूरन की गोली
पूछती तुम की अब तो तृप्त तेरी आत्मा हो ली
अब एक रोटी भी खा ले रे़
रुको मैं खुद तुझे खिलाती हूं
तोता मैना गईया बछिया
ये सब भी दिखलाती हूं
दिन भर मैं फिर भाग दौड़ कर
कितना तुझे सताता था
और नहीं तो पाव भर मैं
दिन भर में रक्त जलाता था
अब बैठ अकेला नितांत कभी मैं
चुपचाप ये सोचा करता हूं
देख वक्त की बदलती करवटें
गिर गिर कर खुद सम्हलता हूं
समय बदला और वाक्य बदले
पहले कहती थी "दस बज गया सो जाओ"
फिर हुआ कहना "दस बजते घर आ जाना"
अब तो बस इतना कहते सुन पता हूं
"दस बज गया अब तक फोन नही किया"
अब तो कुछ इसी तरह से
दस बजते बजते दस साल हुए
to be continued...
©गीतेय...
#mothers_day