White सुरसा सी हुई भक्ति राम की
लोगों की लोकेशना उधियाई रे!
एक चार बढ़े दूजा चौसठ जोजन
कोई दो तलवार भांजे तो अगला दूना
फिर आठ के बदले बांधे अट्ठासी बाजे
भीतर का भाव बाजे ठन ठन गोपाल रे!
चारो चौराहे पर गूंजा अट्टहास रे!
भाव की भीनी, भक्ति की विनम्रता
नजर न कहीं आय रे!
कौन समझा है यहां की
क्षमा शोभती उसी भुजंग को जिसके पास गरल हो
भीतर समृद्ध पर बाहर मृदु भाव सरल हो
पर भुजंग जब भांग पीकर
भांगड़ा मचाए रे!
फिर धर्म कहीं,छोड़ कर्म यहीं
धर्मिष्ठता दिखलाए रे!
©गीतेय...
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