दृश्य बोध जब जंजीर से, किसी इतर को बांधा गया, तब | हिंदी विचार

"दृश्य बोध जब जंजीर से, किसी इतर को बांधा गया, तब बेवजह, जंजीर भी स्वयं बंध गई ! किंतु जंजीर का, सृजन, स्वभाव, सत्व, सबकुछ, इतर को बांधना ही हो तो; परिणाम निष्प्रयोजन नहीं है ! ----------- जैसे जंजीर ने, अपने स्वभाव का प्रबंध किया, सृष्टि पालक ने, जंजीर को वही वापस दिया ! इसी दृष्टि और दृश्य बोध के संदर्भ में, हमें अपने, पात्र निर्माण को यदा-कदा, इर्द गिर्द के, दर्पणों में देख लेना चाहिए ! कहीं हम, रफ्ता रफ्ता जंजीर सी; तकदीर तो नहीं गढ़ते जा रहे है ! डॉ आनंद दाधीच ''दधीचि'' भारत ©Anand Dadhich"

 दृश्य बोध

जब जंजीर से,
किसी इतर को बांधा गया,
तब बेवजह,
जंजीर भी स्वयं बंध गई !
किंतु जंजीर का,
सृजन, स्वभाव, सत्व, सबकुछ,
इतर को बांधना ही हो तो;
परिणाम निष्प्रयोजन नहीं है !
-----------
जैसे जंजीर ने,
अपने स्वभाव का प्रबंध किया,
सृष्टि पालक ने,
जंजीर को वही वापस दिया !
इसी दृष्टि और दृश्य बोध के संदर्भ में,
हमें अपने,
पात्र निर्माण को यदा-कदा,
इर्द गिर्द के,
दर्पणों में देख लेना चाहिए !

कहीं हम,
रफ्ता रफ्ता जंजीर सी;
तकदीर तो नहीं गढ़ते जा रहे है !

डॉ आनंद दाधीच ''दधीचि'' भारत

©Anand Dadhich

दृश्य बोध जब जंजीर से, किसी इतर को बांधा गया, तब बेवजह, जंजीर भी स्वयं बंध गई ! किंतु जंजीर का, सृजन, स्वभाव, सत्व, सबकुछ, इतर को बांधना ही हो तो; परिणाम निष्प्रयोजन नहीं है ! ----------- जैसे जंजीर ने, अपने स्वभाव का प्रबंध किया, सृष्टि पालक ने, जंजीर को वही वापस दिया ! इसी दृष्टि और दृश्य बोध के संदर्भ में, हमें अपने, पात्र निर्माण को यदा-कदा, इर्द गिर्द के, दर्पणों में देख लेना चाहिए ! कहीं हम, रफ्ता रफ्ता जंजीर सी; तकदीर तो नहीं गढ़ते जा रहे है ! डॉ आनंद दाधीच ''दधीचि'' भारत ©Anand Dadhich

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