मैं अजड़ अजान अबोध पथ राही, तुम केवल सत्य की स्याही

"मैं अजड़ अजान अबोध पथ राही, तुम केवल सत्य की स्याही। मैं हूँ विचल व्यर्थ अज्ञानी, तुम गंगा का निर्मल पानी। व्यर्थ अनर्थ विचल है सब कुछ, बिन तेरे निर-अर्थ है सब कुछ। ©kahanikar"

 मैं अजड़ अजान अबोध पथ राही,
तुम केवल सत्य की स्याही। 

मैं हूँ विचल व्यर्थ अज्ञानी, 
तुम गंगा का निर्मल पानी। 

व्यर्थ अनर्थ विचल है सब कुछ, 
बिन तेरे निर-अर्थ है सब कुछ।

©kahanikar

मैं अजड़ अजान अबोध पथ राही, तुम केवल सत्य की स्याही। मैं हूँ विचल व्यर्थ अज्ञानी, तुम गंगा का निर्मल पानी। व्यर्थ अनर्थ विचल है सब कुछ, बिन तेरे निर-अर्थ है सब कुछ। ©kahanikar

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