मैंने लफ्ज़ चुने कुछ,
कई ख्यालों को उनमें बुनना चाहा।
मैने लबों से किताबें पढ़ी,
कहानियों को आंखो से सुनना चाहा।
मैंने अनुभव लाखों जोड़े,
उन्हें मन के चरखे से धुनना चाहा।
मैने ईट, पत्थर फेंक दिए,
ख्वाबों के रेशम से घर बुनना चाहा।
मैंने रूहों का सफ़र किया,
प्यास को नूर से मिटाना चाहा।
जो भाव मेरे शब्द कह न सकें,
उन्हें आंखों ने बताना चाहा।
मैंने लहरों पर चलकर सफ़र किया,
हाथों से आग पर चलना चाहा।
मैंने बारिश में अपना जिस्म भिगोया,
रूतों को आहट से बदलना चाहा।
पत्थरों पर फूल खिले,
कश्ती ने किनारा बदलना चाहा।
उसका आना कुछ ऐसा था,
शूमेघ ने उठकर संभालना चाहा।
©kahanikar
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