खरोंच लेता हूं अक्सर जिस्म पर लगे इन घावों को,
क्यों कि इन्हें हमेशा हमेशा के लिए ताज़ा रखने हैं,
इसलिए नहीं कि मुझे जख्म से मोहब्बत हो गई हैं,
बल्कि इस लिए कि ये ज़ख्म देने वाले मेरे अपने हैं।।
कवि सत्यनारायण स्वदेशी
चित्तौड़गढ़
©Satyanarayan "Swadeshi"
खरोंच लेता हूं अक्सर जिस्म पर लगे इन घावों को,
क्यों कि इन्हें हमेशा हमेशा के लिए ताज़ा रखने हैं,
इसलिए नहीं कि मुझे जख्म से मोहब्बत हो गई हैं,
बल्कि इस लिए कि ये ज़ख्म देने वाले मेरे अपने हैं।।
कवि सत्यनारायण स्वदेशी
चित्तौड़गढ़