दोस्तों आज मैं अपनी पहली नज़्म पेश कर रहा हूँ।
जिसका शीर्षक मैं बना नहीं पाया लेकिन ये मेरी यादों से जुड़ी है
तो इसका शीर्षक "पुरानी यादें" रख रहा हूँ। आपको अच्छी लगे तो शेयर करें।
आँखों में अश्क़ लिए ज़िन्दगी को तोल रहा है
वह पुरानी यादों को अलमारी में टटोल रहा है
खामोश बैठा है दीवारों से लग कर
मगर आँखों से सब कुछ बोल रहा है
बंद करके गया था दिल के दरवाजों को
अब आहिस्ता-आहिस्ता उन्हें खोल रहा है
पास ही खड़ा हूं उसके मगर
वो मुझे अंधेरों में टटोल रहा है
बिताया गया हर वक्त उसके साथ
मेरी जिंदगी का वो पल अनमोल रहा है
बनाकर मेरी तस्वीर दीवारों पर
वो बेजान दीवारों से बोल रहा है
- ललित कुमार गौतम
दोस्तों आज मैं अपनी पहली नज़्म पेश कर रहा हूँ। जिसका शीर्षक मैं बना नहीं पाया लेकिन ये मेरी यादों से जुड़ी है तो इसका शीर्षक "पुरानी यादें" रख रहा हूँ। आपको अच्छी लगे तो शेयर करें।
आँखों में अश्क़ लिए ज़िन्दगी को तोल रहा है
वह पुरानी यादों को अलमारी में टटोल रहा है
खामोश बैठा है दीवारों से लग कर
मगर आँखों से सब कुछ बोल रहा है