Parnassian's Cafe

Parnassian's Cafe Lives in Dehradun, Uttarakhand, India

"मैं शायर नहीं हूँ फिर भी शायरी पर गुमान करता हूँ। पैदा हुआ जिस भारत में उस पर अभिमान करता हूँ।।" "कैसे बयां कर दूं अपनी सख्सियत चंद शब्दों में। एक जमाना लगा है ये "ललित" बनते-बनते।।"

https://parnassianscafe.com

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जाति-जाति में जाति हैं, जो केतन के पात। रैदास मनुष ना जुड़ सके जब तक जाति न जात।।

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रैदास मनुष ना जुड़ सके जब तक जाति न जात।।

Happy Chocolateday समय पे बुलाती है तो 'लेट' क्या करें। हुए जो 'लेट' फ़िर 'चॉकलेट' क्या करे।।

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समय पे बुलाती है तो 'लेट' क्या करें।
हुए जो 'लेट' फ़िर 'चॉकलेट' क्या करे।।

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11 Love

propose day special पढ़ो हमारी आंखें इकरार क्या करें। मोहब्बत है तुमसे इंकार क्या करें।।

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पढ़ो हमारी आंखें इकरार क्या करें।
मोहब्बत है तुमसे इंकार क्या करें।।

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तुम हो मेरी हक़ीक़त तुम ही मेरा ख़्वाब हो। तुम हो मेरा इश्क़ और तुम ही मेरा गुलाब हो।।

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तुम ही मेरा ख़्वाब हो।
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 तुम ही मेरा गुलाब हो।।

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#मज़बूरियाँ #मोहब्बत #आफ़्ताब #कविता #हक़ीक़त #ग़ुलाब

#मोहब्बत इतनी की मुझे #नबाब कर देती है। #मज़बूरियाँ उसकी ला-#ज़बाब कर देती है।। हक़ीक़तन इश्क़ अब भी करती है मुझसे। मेरी #हक़ीक़त को वो #ख़ाब कर देती है।। एक ग़ज़ब की अदा है उसके हाथों में। छुए जो पानी तो पानी को #शराब कर देती है।।

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दोस्तों आज मैं अपनी पहली नज़्म पेश कर रहा हूँ। जिसका शीर्षक मैं बना नहीं पाया लेकिन ये मेरी यादों से जुड़ी है तो इसका शीर्षक "पुरानी यादें"  रख रहा हूँ। आपको अच्छी लगे तो शेयर करें। आँखों में अश्क़ लिए ज़िन्दगी को तोल रहा है वह पुरानी यादों को अलमारी में टटोल रहा है खामोश बैठा है दीवारों से लग कर मगर आँखों से सब कुछ बोल रहा है बंद करके गया था दिल के दरवाजों को अब आहिस्ता-आहिस्ता उन्हें खोल रहा है पास ही खड़ा हूं उसके मगर वो मुझे अंधेरों में टटोल रहा है बिताया गया हर वक्त उसके साथ मेरी जिंदगी का वो पल अनमोल रहा है बनाकर मेरी तस्वीर दीवारों पर वो बेजान दीवारों से बोल रहा है                   - ललित कुमार गौतम

#कविता  दोस्तों आज मैं अपनी पहली नज़्म पेश कर रहा हूँ।
 जिसका शीर्षक मैं बना नहीं पाया लेकिन ये मेरी यादों से जुड़ी है 
तो इसका शीर्षक "पुरानी यादें"  रख रहा हूँ। आपको अच्छी लगे तो शेयर करें।


आँखों में अश्क़ लिए ज़िन्दगी को तोल रहा है
वह पुरानी यादों को अलमारी में टटोल रहा है

खामोश बैठा है दीवारों से लग कर
मगर आँखों से सब कुछ बोल रहा है

बंद करके गया था दिल के दरवाजों को
अब आहिस्ता-आहिस्ता उन्हें खोल रहा है

पास ही खड़ा हूं उसके मगर
वो मुझे अंधेरों में टटोल रहा है

बिताया गया हर वक्त उसके साथ
मेरी जिंदगी का वो पल अनमोल रहा है

बनाकर मेरी तस्वीर दीवारों पर
वो बेजान दीवारों से बोल रहा है

                  - ललित कुमार गौतम

दोस्तों आज मैं अपनी पहली नज़्म पेश कर रहा हूँ। जिसका शीर्षक मैं बना नहीं पाया लेकिन ये मेरी यादों से जुड़ी है तो इसका शीर्षक "पुरानी यादें"  रख रहा हूँ। आपको अच्छी लगे तो शेयर करें। आँखों में अश्क़ लिए ज़िन्दगी को तोल रहा है वह पुरानी यादों को अलमारी में टटोल रहा है खामोश बैठा है दीवारों से लग कर मगर आँखों से सब कुछ बोल रहा है

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