ज़िन्दगी के पड़ाव पर, मरहम लगाओ घाव पर, शहर क | हिंदी शायरी

"ज़िन्दगी के पड़ाव पर, मरहम लगाओ घाव पर, शहर की आबोहवा से दूर चल अब गांव पर, जानता था कष्ट देगी, बस न था लगाव पर, धूप में तलवे जलाकर, नज़र रक्खी छाँव पर, तेरी फ़ितरत का पता था, लगी इज्ज़त दांव पर, आसमाँ में उड़ा लेकिन, कदम रक्खे ठाँव पर, ज़ुस्तज़ू कुछ भी न गुंजन, सफ़र में हूँ नाव पर, -शशि भूषण मिश्र 'गुंजन' चेन्नई तमिलनाडु ©Shashi Bhushan Mishra"

 ज़िन्दगी  के  पड़ाव पर, 
मरहम लगाओ घाव पर,

शहर  की  आबोहवा से 
दूर  चल  अब  गांव पर,

जानता   था   कष्ट देगी, 
बस   न  था  लगाव पर,

धूप  में  तलवे जलाकर, 
नज़र  रक्खी  छाँव  पर,

तेरी फ़ितरत का पता था, 
लगी   इज्ज़त   दांव  पर,

आसमाँ  में  उड़ा लेकिन, 
कदम  रक्खे   ठाँव   पर,

ज़ुस्तज़ू कुछ भी न गुंजन, 
सफ़र   में   हूँ   नाव   पर,
-शशि भूषण मिश्र 'गुंजन'
      चेन्नई तमिलनाडु

©Shashi Bhushan Mishra

ज़िन्दगी के पड़ाव पर, मरहम लगाओ घाव पर, शहर की आबोहवा से दूर चल अब गांव पर, जानता था कष्ट देगी, बस न था लगाव पर, धूप में तलवे जलाकर, नज़र रक्खी छाँव पर, तेरी फ़ितरत का पता था, लगी इज्ज़त दांव पर, आसमाँ में उड़ा लेकिन, कदम रक्खे ठाँव पर, ज़ुस्तज़ू कुछ भी न गुंजन, सफ़र में हूँ नाव पर, -शशि भूषण मिश्र 'गुंजन' चेन्नई तमिलनाडु ©Shashi Bhushan Mishra

#मरहम लगाओ घाव पर#

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