ढल रही रात, चलने लगी सर्द हवाएं, अकेला चले जा रहा | हिंदी शायरी

"ढल रही रात, चलने लगी सर्द हवाएं, अकेला चले जा रहा मैं और ये मेरी गुमशुदा राहें, या खुदा ये कैसा इंसाफ हुआ... मेरे हिस्से में उदासी, उसके में की किसी और की बाहें। -सुmit ©सुमित"

 ढल रही रात, चलने लगी सर्द हवाएं,
अकेला चले जा रहा मैं और ये मेरी गुमशुदा राहें,
या खुदा ये कैसा इंसाफ हुआ...
मेरे हिस्से में उदासी, उसके में की किसी और की बाहें।




-सुmit

©सुमित

ढल रही रात, चलने लगी सर्द हवाएं, अकेला चले जा रहा मैं और ये मेरी गुमशुदा राहें, या खुदा ये कैसा इंसाफ हुआ... मेरे हिस्से में उदासी, उसके में की किसी और की बाहें। -सुmit ©सुमित

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