स्पंदन... चाहे राजशी आन बान हो या फिर अरण्य बिया | हिंदी Poetry

"स्पंदन... चाहे राजशी आन बान हो या फिर अरण्य बियाबान हो महल विशाल आलीशान हो। या सादा घास-फूस का मकान हो। वन उपवन में परिणित हो जाता है जब अधरों पे मीठी मुस्कान हो। क्योंकि मुस्कान तब ही जागृत होती है जब अन्तरहृदय में प्रेम स्पंदन होता है। नहीं तो हर उन्मुक्त अट्टाहास के पीछे सदैव एक करुण क्रंदन होता है। -चंद्रमोहन, 09/12/2017, 15:32 ©chandra_mohan_pokhriyal"

 स्पंदन...

चाहे राजशी आन बान हो
या फिर अरण्य बियाबान हो

महल विशाल आलीशान हो।
या सादा घास-फूस का मकान हो।

वन उपवन में परिणित हो जाता है
जब अधरों पे मीठी मुस्कान हो।

क्योंकि मुस्कान तब ही जागृत होती है
जब अन्तरहृदय में प्रेम स्पंदन होता है।

नहीं तो हर उन्मुक्त अट्टाहास के पीछे
सदैव एक करुण क्रंदन होता है।

-चंद्रमोहन, 09/12/2017, 15:32

©chandra_mohan_pokhriyal

स्पंदन... चाहे राजशी आन बान हो या फिर अरण्य बियाबान हो महल विशाल आलीशान हो। या सादा घास-फूस का मकान हो। वन उपवन में परिणित हो जाता है जब अधरों पे मीठी मुस्कान हो। क्योंकि मुस्कान तब ही जागृत होती है जब अन्तरहृदय में प्रेम स्पंदन होता है। नहीं तो हर उन्मुक्त अट्टाहास के पीछे सदैव एक करुण क्रंदन होता है। -चंद्रमोहन, 09/12/2017, 15:32 ©chandra_mohan_pokhriyal

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