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फूल खिलते हैं बिखर जाते हैं,
रंग चढ़ते हैं कि उतर जाते हैं..
जो चल पड़े उजालों में उनकी क्या फ़िक्र
जो निकले हैं अंधेरों में, वो किधर जाते हैं ?
लाख मुश्किलें ही सही मुस्करा देते हैं,
और वो कहते हैं हम बिफर जाते हैं.....
उड़ते बादल, सर्द हवाएँ, बदलता मौसम
यहीं हैं जो अब फकत नज़र आते हैं..
कहने को उस मोड़ पर घर है
उसका पर देखे उसे जमाने गुज़र जाते हैं..
सुना है आज़ भी बला की खूबसूरत है
वो कोई देख ले तो कदम ठहर जाते हैं..
बैचैन हूं पर जाता नहीं उसकी चौखट पर कभी
एक मर्तबा उसने कहा था, बेकार यूँ ही चले आते हैं...
तुम मिलो कभी तो हाल उसका मुझे सुनाना, सुना है
वो अब मिलने की वज़ह चाहते हैं...
अब जो निकल आयें हैं
उन गलियों से, तो मुड़ना कैसा
उनसे कहना कि मिलने के मौसम गुज़र जाते हैं..
उतरे हैं किसी के जहन में हम भी बेइंतहा, पर
हमारी नजरों में वो कहाँ बसर आते हैं..
ज़रा ठहरो, इश्क़ का जुनूँ जो ढल जाने दो,
फिर देखो ये रिश्ते किधर जाते हैं..
जो चल पडे उजालों में उनकी क्या फ़िक्र
©Shivkumar
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