नींद का मारा लगे, कितना बेचारा लगे, स्वाद पहली | हिंदी शायरी

"नींद का मारा लगे, कितना बेचारा लगे, स्वाद पहली दफ़ा सा, फिर न दोबारा लगे, दर्द की आग़ोश में, चाँद अंगारा लगे, बिगड़ जाए स्वाद तो, शहद भी खारा लगे, प्रेम की पहचान है, गैर भी प्यारा लगे, हताशा में आदमी, दुनिया से हारा लगे, स्वार्थ में अंधे हुए को, हर कोई चारा लगे, भटकता गुंजन फिरे, हर राह बंजारा लगे, --शशि भूषण मिश्र 'गुंजन' चेन्नई ©Shashi Bhushan Mishra"

 नींद का  मारा लगे, 
कितना बेचारा लगे, 

स्वाद पहली दफ़ा सा,
फिर न दोबारा लगे,

दर्द की  आग़ोश में,
चाँद   अंगारा  लगे,

बिगड़ जाए स्वाद तो,
शहद भी खारा लगे,

प्रेम  की  पहचान है, 
गैर  भी  प्यारा  लगे,

हताशा  में  आदमी, 
दुनिया से हारा लगे,

स्वार्थ में अंधे हुए को, 
हर कोई  चारा लगे,

भटकता गुंजन फिरे, 
हर  राह बंजारा लगे,
  --शशि भूषण मिश्र 
      'गुंजन' चेन्नई

©Shashi Bhushan Mishra

नींद का मारा लगे, कितना बेचारा लगे, स्वाद पहली दफ़ा सा, फिर न दोबारा लगे, दर्द की आग़ोश में, चाँद अंगारा लगे, बिगड़ जाए स्वाद तो, शहद भी खारा लगे, प्रेम की पहचान है, गैर भी प्यारा लगे, हताशा में आदमी, दुनिया से हारा लगे, स्वार्थ में अंधे हुए को, हर कोई चारा लगे, भटकता गुंजन फिरे, हर राह बंजारा लगे, --शशि भूषण मिश्र 'गुंजन' चेन्नई ©Shashi Bhushan Mishra

#राह बंजारा लगे#

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