मैं घड़ी,हर घड़ी जिसे ढूँढता रहा अपने सपनों के आईने | हिंदी शायरी

"मैं घड़ी,हर घड़ी जिसे ढूँढता रहा अपने सपनों के आईने में उसे देखता रहा थी जो आँगन की तुलसी अपने पीर की और मैं गुलाबों के बाग में उसे ढूँढता रहा।।"

 मैं घड़ी,हर घड़ी जिसे ढूँढता रहा
अपने सपनों के आईने में उसे देखता रहा
थी जो आँगन की तुलसी अपने पीर की
और मैं गुलाबों के बाग में उसे ढूँढता रहा।।

मैं घड़ी,हर घड़ी जिसे ढूँढता रहा अपने सपनों के आईने में उसे देखता रहा थी जो आँगन की तुलसी अपने पीर की और मैं गुलाबों के बाग में उसे ढूँढता रहा।।

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