छपते-छपते रह गया, बचते-बचते बह गया, चश्मदीद | हिंदी शायरी

"छपते-छपते रह गया, बचते-बचते बह गया, चश्मदीद था एक अदद, जाते-जाते कह गया, मौत के साये में चुप था, दर्द ज़माने का सह गया, मिट्टी का जर्जर घर था, इस बारिश में ढह गया, छोड़ गया घर-आंगन सूना, मुद्दों से कर सुलह गया, पता ठिकाना बता कोई, जाने कौन सी जगह गया, मिटा गया रंजिशें तमाम, 'गुंजन' लेकर कलह गया, --शशि भूषण मिश्र 'गुंजन' प्रयागराज उ॰प्र॰ ©Shashi Bhushan Mishra"

 छपते-छपते  रह  गया, 
बचते-बचते  बह  गया,

चश्मदीद था एक अदद, 
जाते-जाते  कह  गया,

मौत के साये में चुप था, 
दर्द ज़माने का सह गया,

मिट्टी का जर्जर घर था, 
इस बारिश में ढह गया,

छोड़ गया घर-आंगन सूना,
मुद्दों से  कर सुलह गया,

पता ठिकाना  बता कोई, 
जाने कौन सी जगह गया,

मिटा गया रंजिशें  तमाम, 
'गुंजन' लेकर कलह गया,
--शशि भूषण मिश्र 'गुंजन'
      प्रयागराज उ॰प्र॰

©Shashi Bhushan Mishra

छपते-छपते रह गया, बचते-बचते बह गया, चश्मदीद था एक अदद, जाते-जाते कह गया, मौत के साये में चुप था, दर्द ज़माने का सह गया, मिट्टी का जर्जर घर था, इस बारिश में ढह गया, छोड़ गया घर-आंगन सूना, मुद्दों से कर सुलह गया, पता ठिकाना बता कोई, जाने कौन सी जगह गया, मिटा गया रंजिशें तमाम, 'गुंजन' लेकर कलह गया, --शशि भूषण मिश्र 'गुंजन' प्रयागराज उ॰प्र॰ ©Shashi Bhushan Mishra

#इस बारिश में ढह गया#

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