नारी शक्ति...🤞🔥 मां की परछाई और बाबा की गुमशुदा आश

"नारी शक्ति...🤞🔥 मां की परछाई और बाबा की गुमशुदा आश हूं। मां कि सुरीली लोरी और मखमली गोदी में, सोती हुई नन्हीं मासूम , बाबा के सिर की ताज हूं। इस दुनियां के आलिशान बंगलो कि तो नहीं, पर अपने चार-कद वाले चार दिवारी के अंदर,, शहंशा-ए-हिन्द कि जन-ए-खास हूं।। मां कि लोरी में सोती हुई जान, मासूम जानों को अपनी निंद में सुलाती हुई ममता ,,, अपनों का पेट भर स्वयं भुखी रहने कि साहस हूं।। स्वयं अंधेरों में आंसुओ का समंदर बहाकर, अपनों को खुश रखने का दृढ़ निश्चय हूं।। स्वयं के तन पर अनगिनत बुरी नज़रे हैं, पर अपनो के लिए ,,काला टीका बनकर रहने वाली हूं। जी हां !! इस बिखरे हुए आशियाने को,, समेटने वाली एक मात्र पात्र हूं।।। हां,,,**!! मैं ही....***** आदि काल से इस संपूर्ण सृष्टि का ,,, अन्त और आरम्भ हूं।।। , ©Naina Chandravanshi"

 नारी शक्ति...🤞🔥
मां की परछाई और बाबा की गुमशुदा आश हूं।
मां कि सुरीली लोरी और मखमली गोदी में,
सोती हुई नन्हीं मासूम , बाबा के सिर की ताज हूं।
इस दुनियां के आलिशान बंगलो कि तो नहीं,
पर अपने चार-कद वाले चार दिवारी के अंदर,,
शहंशा-ए-हिन्द कि जन-ए-खास हूं।।
मां कि लोरी में सोती हुई जान,
मासूम जानों को अपनी निंद में सुलाती हुई ममता ,,,
अपनों का पेट भर स्वयं भुखी रहने कि साहस हूं।।
स्वयं अंधेरों में आंसुओ का समंदर बहाकर,
अपनों को खुश रखने का दृढ़ निश्चय हूं।।
स्वयं के तन पर अनगिनत बुरी नज़रे हैं,
पर अपनो के लिए ,,काला टीका बनकर रहने वाली हूं।
जी हां !! इस बिखरे हुए आशियाने को,,
समेटने वाली एक मात्र पात्र हूं।।।
हां,,,**!! मैं ही....*****
आदि काल से इस संपूर्ण सृष्टि का ,,,
अन्त और आरम्भ हूं।।।
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©Naina Chandravanshi

नारी शक्ति...🤞🔥 मां की परछाई और बाबा की गुमशुदा आश हूं। मां कि सुरीली लोरी और मखमली गोदी में, सोती हुई नन्हीं मासूम , बाबा के सिर की ताज हूं। इस दुनियां के आलिशान बंगलो कि तो नहीं, पर अपने चार-कद वाले चार दिवारी के अंदर,, शहंशा-ए-हिन्द कि जन-ए-खास हूं।। मां कि लोरी में सोती हुई जान, मासूम जानों को अपनी निंद में सुलाती हुई ममता ,,, अपनों का पेट भर स्वयं भुखी रहने कि साहस हूं।। स्वयं अंधेरों में आंसुओ का समंदर बहाकर, अपनों को खुश रखने का दृढ़ निश्चय हूं।। स्वयं के तन पर अनगिनत बुरी नज़रे हैं, पर अपनो के लिए ,,काला टीका बनकर रहने वाली हूं। जी हां !! इस बिखरे हुए आशियाने को,, समेटने वाली एक मात्र पात्र हूं।।। हां,,,**!! मैं ही....***** आदि काल से इस संपूर्ण सृष्टि का ,,, अन्त और आरम्भ हूं।।। , ©Naina Chandravanshi

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