तुम इन्द्र! मान मर्दन करते,
गिरिराज! धार, बृज दुःख हरते,
रतिपति! की प्रतिष्ठाभंग करते,
गोपी में ’प्रेम–प्राण’ भरते,
महारास रचाते निधिवन में,
हर गोपी को निज संग दिखते।
गजराज सदृश मत्त धुन वाले,
श्रीपति! तुमको शत–शत प्रणाम।। श्री.....
©Tara Chandra
#श्रीकृष्ण_स्तुति 3/8