Tara Chandra

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#समाज  तुम अनगिन सूर्य से उजले हो,
तुम हृदयकमल, तुम प्रसन्नमन, 
अंजन से युक्त नेत्र सुन्दर,
बाणों सी चोट करती चितवन,
तुम विरह अग्नि पीने वाले,
तुम किशोर कांति अंग वाले,
श्रीजी संग सदा विहार करें,
श्रीकृष्णचन्द्र! शत–शत प्रणाम।। श्री.....

©Tara Chandra

श्रीकृष्ण_स्तुति 8/8

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#समाज  तुम गुण की खान, आनंदज्ञान,
देवों पे कृपा तुम करते हो,
तुम दैत्य नाश भी करते प्रभु,
सृष्टि को नाच नचाते हो,
पूर्ति करते, अभिलाषा की,
तुम ही निकुंज में विराजते,
हे नृत्य नाट्य के मूल स्रोत,
घनश्याम! मेरा शत–शत प्रणाम।। श्री.....

©Tara Chandra

श्रीकृष्ण _स्तुति 7/8

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#समाज  धरती का भार, तुम उतारते,
भवसागर से तुम उबारते,
तुमसे क्या छुपा? अन्तर्यामी,
सम्पूर्ण कला के तुम स्वामी,
सेवित हो दिव्य सखी से तुम,
गीताज्ञानी तुम नित्य नए, 
कमनीय कटाक्ष चलाने में,
हे दक्ष कृष्ण! शत–शत प्रणाम।। श्री.....

©Tara Chandra

श्रीकृष्ण_स्तुति 6/8

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#समाज  स्थापित हैं तुम्हारे चरणकमल,
मेरे मनरूप सरोवर में,
अति सुन्दर अलक हैं माथे पर,
दर्शन में नित खो जाता मैं,
तुम भय, विषाद हरने वाले,
मन दोषों को दलने वाले,
जग का पोषण करने वाले,
श्री कृष्णचन्द्र! शत–शत प्रणाम।। श्री.....

©Tara Chandra

श्रीकृष्ण_स्तुति 5/8

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#समाज  कानों में कदम्बपुष्प कुंडल,
मनमोहक छवि, कपोल सुन्दर,
तुम एकमात्र बृज प्राणाधार,
तुम नन्द बाबा के दुलार,
तुम एकमात्र आनंददायक,
तुम ग्वालसखा, तुम गोपालक,
तुम निकट अति तुम दुर्लभतम,
गोपाल! मेरा शत–शत प्रणाम।। श्री.....।

©Tara Chandra

श्रीकृष्ण_स्तुति 4/8

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#श्रीकृष्ण_स्तुति #समाज  तुम इन्द्र! मान मर्दन करते,
गिरिराज! धार, बृज दुःख हरते,
रतिपति! की प्रतिष्ठाभंग करते,
गोपी में ’प्रेम–प्राण’ भरते,
महारास रचाते निधिवन में,
हर गोपी को निज संग दिखते।
गजराज सदृश मत्त धुन वाले,
श्रीपति! तुमको शत–शत प्रणाम।। श्री.....

©Tara Chandra
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