White नींद से मेरा त'अल्लुक़ ही नहीं बरसों से ख्व | हिंदी शायरी

"White नींद से मेरा त'अल्लुक़ ही नहीं बरसों से ख्वाब आ आ के मेरी छत पे टहलते क्यों हैं मोड़ होता है जवानी का संभलने के लिए और सब लोग यहीं आके फिसलते क्यों हैं Rahat Indori ©Varun Vashisth"

 White नींद से मेरा त'अल्लुक़ ही नहीं बरसों से
ख्वाब आ आ के मेरी छत पे टहलते क्यों हैं

मोड़ होता है जवानी का संभलने के लिए
और सब लोग यहीं आके फिसलते क्यों हैं 

Rahat Indori

©Varun Vashisth

White नींद से मेरा त'अल्लुक़ ही नहीं बरसों से ख्वाब आ आ के मेरी छत पे टहलते क्यों हैं मोड़ होता है जवानी का संभलने के लिए और सब लोग यहीं आके फिसलते क्यों हैं Rahat Indori ©Varun Vashisth

#good_night

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