यह जिंदगी पन्नों की तरह
पलटती जा रही है।
बहुत कुछ है छिपा
हर दर्द हर खुशी को बराबर
समेटे जा रही है।।
कल की चिंता के शोक में नहीं
आज को आज ही जिए जा रही है।
कल्पनाओं से भरी दुनियां मगर
सच की दहलीज पर
खुद से रूबरू जिए जा रही है।।
टूटते हैं बिखरते हैं
सपन जैसे सितारों से
उनकी अदृश्य रोशनी को
अपनी मुठ्ठियों में समेटे जा रही है।
हर सुबह एक नया आगाज़ है
बस यही विश्वास खुद को दिए जा रही है।।
©PRADYUMNA AROTHIYA
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