"हमने अपने आंखों में दरिया समेट रक्खा है
दर्द जितने भी है उंगलियों में लपेट रक्खा है
वो जब आएंगी शेखर के करीब तो फफक के रो पड़ेंगीं
हमने उनकी तस्वीरों को अपने कब्र में भी सजा रक्खा है
शशांक शेखर त्रिपाठी"
हमने अपने आंखों में दरिया समेट रक्खा है
दर्द जितने भी है उंगलियों में लपेट रक्खा है
वो जब आएंगी शेखर के करीब तो फफक के रो पड़ेंगीं
हमने उनकी तस्वीरों को अपने कब्र में भी सजा रक्खा है
शशांक शेखर त्रिपाठी