चाहता रहा स्नेह ,जिम्मेदारियाँ सौंपी गई चाहता रहा | हिंदी कविता

"चाहता रहा स्नेह ,जिम्मेदारियाँ सौंपी गई चाहता रहा प्रेम ,कमजोरियाँ थोपी गई जीवन भर दौड़ाते रहे ,दौड़ाते रहे क्या वो चाहते रहे ,क्या हम चाहते रहे । कुछ वे समझ लेते ,कुछ हम समझ लेते । मिल बैठते ,तो जीवन जी लेते । पर सलीका कहने का न उनको आया सलीका सुनने का न हमको आया । जो वो बनाना चाहते थे ,हम बन न सके जिसे वो चाहते थे ,हम हो न सके । उम्र गुजरी भागते भागते ही मेरी हर वक्त खोजते रहे मुरव्वत तेरी ।। ©दर्शनप्रशांत"

 चाहता रहा स्नेह ,जिम्मेदारियाँ सौंपी गई 
चाहता रहा प्रेम ,कमजोरियाँ  थोपी गई
जीवन भर दौड़ाते रहे ,दौड़ाते रहे 
क्या वो चाहते रहे ,क्या हम चाहते रहे ।
कुछ वे समझ लेते ,कुछ हम समझ लेते ।
मिल बैठते ,तो जीवन जी लेते ।
पर सलीका कहने का न उनको आया 
सलीका सुनने का न हमको आया ।
जो वो बनाना चाहते थे ,हम बन न सके 
जिसे वो चाहते थे ,हम हो न सके ।
उम्र गुजरी भागते भागते ही मेरी 
हर वक्त खोजते रहे मुरव्वत तेरी ।।

©दर्शनप्रशांत

चाहता रहा स्नेह ,जिम्मेदारियाँ सौंपी गई चाहता रहा प्रेम ,कमजोरियाँ थोपी गई जीवन भर दौड़ाते रहे ,दौड़ाते रहे क्या वो चाहते रहे ,क्या हम चाहते रहे । कुछ वे समझ लेते ,कुछ हम समझ लेते । मिल बैठते ,तो जीवन जी लेते । पर सलीका कहने का न उनको आया सलीका सुनने का न हमको आया । जो वो बनाना चाहते थे ,हम बन न सके जिसे वो चाहते थे ,हम हो न सके । उम्र गुजरी भागते भागते ही मेरी हर वक्त खोजते रहे मुरव्वत तेरी ।। ©दर्शनप्रशांत

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