दर्शनप्रशांत

दर्शनप्रशांत Lives in Lucknow, Uttar Pradesh, India

उस अनंत सूर्य का ज्योति अंश यद्यपि उत्सुकता चिर विध्वंस मैं अनुपम पथ का राही बन भटक रहा समय के उपवन ,"

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जब आशा का सूरज बुझ जाए और घोर अंधेरा छा जाए फिर शक्ति स्वरूपा नारी सबका सम्बल बन जाए । तुम माँ हो तुम माँ हो पत्नी होकर भी माँ हो , शक्ति का स्रोत रहो सदा मत खोजो शक्ति यदा कदा , दुर्भाग्य समाज व्यवस्था का जो तुम्हें कभी अबला माने , पुरुष का सामर्थ्य कहाँ जो तेरी क्षमता पहचाने ।। नौ रूप बहुत कम है , जितने रूपों में शक्ति बड़ी । बस अर्चन करें तुम्हारा , मन कृतज्ञ हो हर घड़ी ।। ©दर्शनप्रशांत

#navratri2020  जब आशा का सूरज बुझ जाए 
और घोर अंधेरा छा जाए 
फिर शक्ति स्वरूपा नारी 
सबका सम्बल बन जाए ।
 तुम माँ हो तुम माँ हो 
पत्नी होकर भी माँ हो ,
शक्ति का स्रोत रहो सदा 
मत खोजो शक्ति यदा कदा ,
दुर्भाग्य समाज व्यवस्था का 
जो तुम्हें कभी अबला माने ,
पुरुष का सामर्थ्य कहाँ 
जो तेरी क्षमता पहचाने ।।
नौ रूप बहुत कम है ,
जितने रूपों में शक्ति बड़ी ।
 बस अर्चन करें तुम्हारा ,
मन कृतज्ञ हो हर घड़ी  ।।

©दर्शनप्रशांत

कुछ पैमाने तुमने तोड़े , कुछ हमने स्वीकार किये। कुछ तुमने हमको जकड़ा है कहाँ कहाँ से तन्हा पकड़ा है । फिर भी जीवन तेरे कदमों में नरक सा क्यों लगता है , फरक सा क्यों लगता है।।। ©दर्शनप्रशांत

#ReachingTop  कुछ पैमाने तुमने तोड़े ,
कुछ हमने स्वीकार किये।
 कुछ तुमने हमको जकड़ा है
  कहाँ कहाँ से तन्हा पकड़ा है ।
  फिर भी जीवन तेरे कदमों में 
  नरक सा क्यों लगता है ,
फरक सा क्यों लगता है।।।

©दर्शनप्रशांत

#ReachingTop

10 Love

फ़क़ीरों सा भाग्य रहा ,फिर भी खुद को आजमाते रहे करम किये खूब ,दिल को यूं ही बहलाते रहे हर रात हमारी कैसे गुजरी ,कैसे सोये क्या बतलाये जो बचपन बीता आह भरा ,वो राह कहाँ तक ले जाये ऐसा मालूम कि जिये भी क्या ,या नहीं जिये ,क्या जाने बस लड़ते रहे मुक़द्दर से ,दिल भर हंसना क्या जाने चारों तरफ लोग फैले ,क्या वो सब खुश ही रहते हैं या मेरे जैसे उल्टे पुल्टे बस यूं ही लुढ़कते रहते हैं । सब बच्चे जैसे लगते ,पर उम्र नाप कर आये हैं । बचपन की दुनिया से क्या, कभी निकल भी पाए हैं बडे होकर बोझ ढोया और आदतों का गट्ठर लाद लिया खुद की भाषा न समझे कभी , बस शिकायतों का आविष्कार किया । ©दर्शनप्रशांत

#LostTracks  फ़क़ीरों सा भाग्य रहा ,फिर भी खुद को आजमाते रहे
करम किये खूब ,दिल को यूं ही बहलाते रहे
हर रात हमारी कैसे गुजरी ,कैसे सोये क्या बतलाये 
जो बचपन बीता आह भरा ,वो राह कहाँ तक ले जाये
ऐसा मालूम कि जिये भी क्या ,या नहीं जिये ,क्या जाने 
बस लड़ते रहे मुक़द्दर से ,दिल भर हंसना क्या जाने 
चारों तरफ लोग फैले ,क्या वो सब खुश ही रहते हैं 
या मेरे जैसे उल्टे पुल्टे बस यूं ही लुढ़कते रहते हैं ।
सब बच्चे जैसे लगते ,पर उम्र नाप कर आये हैं ।
बचपन की दुनिया से क्या, कभी निकल भी पाए हैं 
बडे होकर बोझ ढोया
 और आदतों का गट्ठर लाद लिया 
खुद की भाषा न समझे कभी ,
बस शिकायतों का आविष्कार किया ।

©दर्शनप्रशांत

#LostTracks

10 Love

जो समझा पहली बार में समझा जो खूब समझा ,वो क्या समझा । अब नहीं समझा तो ना समझा ना समझा ,तो क्या समझा ।। फिर दोहराया ,खुद को दोहराया बचपन पर सब कवर चढ़ाया दूसरों को सब साबित करके जो समझा था ,सब भुलवाया । जो देखा ,बचपन मे देखा जो ना देखा वो ना देखा । जो देखा उसको ही पाया जो ना देखा ,वो क्या पाया ।। जो समझा था ,उसको दोहराया जो देखा था ,वो सच पाया । पर जो पाया ,क्या वो देखा था । या जो समझा था ,वो देखा था । ना समझा था ,फिर भी दोहराया ना देखा था ,फिर भी दोहराया ।। क्यों दोहराया ,क्यों दोहराया क्योंकि एक समझ और एक बार , जब देखा था ,तब देखा था तब ही समझा था ,तब ही जाना था ।। पर लोग दुहराते गए ,हम दुहराते गए दुहराते गए ,दुहराते गए कि भूल गए क्या देखा था ,और क्या समझा था ।।। ©दर्शनप्रशांत

#कविता #worldpostday  जो समझा पहली बार में समझा 
जो खूब समझा ,वो क्या समझा ।
अब नहीं समझा तो ना समझा 
ना समझा ,तो क्या समझा ।।
फिर दोहराया ,खुद को दोहराया 
बचपन पर सब कवर चढ़ाया 
दूसरों को सब साबित करके 
जो समझा था ,सब भुलवाया ।
जो देखा ,बचपन मे देखा 
जो ना देखा वो ना देखा ।
जो देखा उसको ही पाया 
जो ना देखा ,वो क्या पाया ।।
जो समझा था ,उसको दोहराया 
जो देखा था ,वो सच पाया ।
पर जो पाया ,क्या वो देखा था ।
या जो समझा था ,वो देखा था ।
ना समझा था ,फिर भी दोहराया 
ना देखा था ,फिर भी दोहराया ।।
क्यों दोहराया ,क्यों दोहराया 
क्योंकि एक समझ और एक बार ,
जब देखा था ,तब देखा था 
तब ही समझा था ,तब ही जाना था ।।
पर लोग दुहराते गए ,हम दुहराते गए 
दुहराते गए ,दुहराते गए 
कि भूल गए क्या देखा था ,और क्या समझा था ।।।

©दर्शनप्रशांत

चाहता रहा स्नेह ,जिम्मेदारियाँ सौंपी गई चाहता रहा प्रेम ,कमजोरियाँ थोपी गई जीवन भर दौड़ाते रहे ,दौड़ाते रहे क्या वो चाहते रहे ,क्या हम चाहते रहे । कुछ वे समझ लेते ,कुछ हम समझ लेते । मिल बैठते ,तो जीवन जी लेते । पर सलीका कहने का न उनको आया सलीका सुनने का न हमको आया । जो वो बनाना चाहते थे ,हम बन न सके जिसे वो चाहते थे ,हम हो न सके । उम्र गुजरी भागते भागते ही मेरी हर वक्त खोजते रहे मुरव्वत तेरी ।। ©दर्शनप्रशांत

#कविता #leftalone  चाहता रहा स्नेह ,जिम्मेदारियाँ सौंपी गई 
चाहता रहा प्रेम ,कमजोरियाँ  थोपी गई
जीवन भर दौड़ाते रहे ,दौड़ाते रहे 
क्या वो चाहते रहे ,क्या हम चाहते रहे ।
कुछ वे समझ लेते ,कुछ हम समझ लेते ।
मिल बैठते ,तो जीवन जी लेते ।
पर सलीका कहने का न उनको आया 
सलीका सुनने का न हमको आया ।
जो वो बनाना चाहते थे ,हम बन न सके 
जिसे वो चाहते थे ,हम हो न सके ।
उम्र गुजरी भागते भागते ही मेरी 
हर वक्त खोजते रहे मुरव्वत तेरी ।।

©दर्शनप्रशांत

#leftalone

8 Love

#irrfan khan

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