कभी ठहरना कहीं तो सोचना
क्या सच में हम एक दूसरे से मोहब्बत नही करते
क्या रह पाते है हम एक दूसरे से मिले बगैर
क्या आता है सुकून हमको बिना देखे
मगर रहना पड़ रहा है ना
यही बात जो है दिल को खाए जा रही है
क्या कोई इसीलिए प्यार करता है
क्या इसीलिए एक दूसरे पर जान छिड़कता है कोई
इसका जवाब ढूंढ रहा हूं
बैठा रहता हूं किसी कोने में अपने दिल की आवाज़ सुनने को
मगर ये मेरा दिल अब है कहा मेरे पास जो सुनाई दे
अक्सर तुम कहते थे ना बहुत से लोग हैं मेरे पास
शायद गलत थे तुम
बहुत से लोग भी तुमसे ही बनते थे
तुम्हारे साथ होने से ही उनसे भी सुकून आता था
तुम्हारे पास होने का मेरे साथ होने का अहसास ही
मुझे तमाम लोगो के साथ बात करने का हौसला देता था
देखो ना अब तुम नही हो मेरे पास
तो कितना अकेला हूं कहीं जी ही नही लग रहा
उन तमाम यारियों का कोई फलसफा ही नही है
कितना उदास है मन कितना बेचैन है लगता है जैसे
कोई बसा बसाया शहर है जो उजड़ गया है
©Vinay Shukla