हिन्दी ( भाषा) मुख से निकली बाणी है , कण कण की ज् | हिंदी कविता

"हिन्दी ( भाषा) मुख से निकली बाणी है , कण कण की ज्वाला राणी है वो आर्यावर्त की वाणी है , हिन्द की शौर्य जुबानी है वो ना धर्म अधर्म की मणी है , सद्भावना की ठकुराणी है वो गाथा की मुजबाणी है , हर हिन्दुस्तानी की रवानी है वो मुख से निकली बाणी है , कण कण की ज्वाला राणी है वो इश्क के लफ़्ज़ों में है , प्रित की परवाणी है वो कटे फलक की राड़धरा है, बिन्दु बिन विधवा नारी है वो 28 बन्धुओं की मिलनसार है, राष्ट्र की भाषा हिन्दी है वो मुख से निकली बाणी है , कण कण की ज्वाला राणी है वो उत्तर निराधार से जाने, दक्षिण बड़ा रिझालू है वो पश्चिम प्रेम से बोले हिन्दी, पूर्व में हिन्दी चीनी भाई है वो संस्कृति का आधार है , हम बिन यह निराधार है वो हर कवि की निगहबानी, बन बैठी जुबां की राणी वो मुख से निकली बाणी है , कण कण की ज्वाला राणी है वो गान मैं अहसान मैं, है हमारी रग रग की धार में वो अलंकार जिसका श्रंगार है, संज्ञा जिसका वस्त्र है वो व्याकरण व्यवहार जिसका,ढाल जिसकी संधि है वो मुख से निकली बाणी है , कण कण की ज्वाला राणी है वो अंग्रेजी का तोड़ है, हिन्दी सबका निचोड़ है वो लिखते कलम से कहती हैं, कलमकार की कलम है वो लिखते लिखते कलम घिसती, जिसकी टीस नहीं मिटती है वो जिसके नाम से देश बना, इतनी प्रिय मधुवाणी है वो मुख से निकली बाणी है , कण कण की ज्वाला राणी है वो ©Khuman Singh"

 हिन्दी ( भाषा)

मुख से निकली बाणी है , कण कण की ज्वाला राणी है वो
आर्यावर्त की वाणी है  , हिन्द की शौर्य जुबानी है वो
ना धर्म अधर्म की मणी है , सद्भावना की ठकुराणी है वो
गाथा की मुजबाणी है , हर हिन्दुस्तानी की रवानी है वो
मुख से निकली बाणी है , कण कण की ज्वाला राणी है वो
इश्क के लफ़्ज़ों में है , प्रित की परवाणी है वो
कटे फलक की राड़धरा है, बिन्दु बिन विधवा नारी है वो
28 बन्धुओं की मिलनसार है, राष्ट्र की भाषा हिन्दी है वो
मुख से निकली बाणी है , कण कण की ज्वाला राणी है वो
उत्तर निराधार से जाने, दक्षिण बड़ा रिझालू है वो
पश्चिम प्रेम से बोले हिन्दी, पूर्व में हिन्दी चीनी भाई है वो
संस्कृति का आधार है , हम बिन यह निराधार है वो
हर कवि की निगहबानी, बन बैठी जुबां की राणी वो 
मुख से निकली बाणी है , कण कण की ज्वाला राणी है वो
गान मैं अहसान मैं, है हमारी रग रग की धार में वो
अलंकार जिसका श्रंगार है, संज्ञा जिसका वस्त्र है वो
व्याकरण व्यवहार जिसका,ढाल जिसकी संधि है वो
मुख से निकली बाणी है , कण कण की ज्वाला राणी है वो
अंग्रेजी का तोड़ है, हिन्दी सबका निचोड़ है वो 
लिखते कलम से कहती हैं, कलमकार की कलम है वो 
लिखते लिखते कलम घिसती, जिसकी टीस नहीं मिटती है वो
जिसके नाम से देश बना, इतनी प्रिय मधुवाणी है वो
मुख से निकली बाणी है , कण कण की ज्वाला राणी है वो

©Khuman Singh

हिन्दी ( भाषा) मुख से निकली बाणी है , कण कण की ज्वाला राणी है वो आर्यावर्त की वाणी है , हिन्द की शौर्य जुबानी है वो ना धर्म अधर्म की मणी है , सद्भावना की ठकुराणी है वो गाथा की मुजबाणी है , हर हिन्दुस्तानी की रवानी है वो मुख से निकली बाणी है , कण कण की ज्वाला राणी है वो इश्क के लफ़्ज़ों में है , प्रित की परवाणी है वो कटे फलक की राड़धरा है, बिन्दु बिन विधवा नारी है वो 28 बन्धुओं की मिलनसार है, राष्ट्र की भाषा हिन्दी है वो मुख से निकली बाणी है , कण कण की ज्वाला राणी है वो उत्तर निराधार से जाने, दक्षिण बड़ा रिझालू है वो पश्चिम प्रेम से बोले हिन्दी, पूर्व में हिन्दी चीनी भाई है वो संस्कृति का आधार है , हम बिन यह निराधार है वो हर कवि की निगहबानी, बन बैठी जुबां की राणी वो मुख से निकली बाणी है , कण कण की ज्वाला राणी है वो गान मैं अहसान मैं, है हमारी रग रग की धार में वो अलंकार जिसका श्रंगार है, संज्ञा जिसका वस्त्र है वो व्याकरण व्यवहार जिसका,ढाल जिसकी संधि है वो मुख से निकली बाणी है , कण कण की ज्वाला राणी है वो अंग्रेजी का तोड़ है, हिन्दी सबका निचोड़ है वो लिखते कलम से कहती हैं, कलमकार की कलम है वो लिखते लिखते कलम घिसती, जिसकी टीस नहीं मिटती है वो जिसके नाम से देश बना, इतनी प्रिय मधुवाणी है वो मुख से निकली बाणी है , कण कण की ज्वाला राणी है वो ©Khuman Singh

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