ये अंतिम बार लिख रहा हूं.....समझ लो, दूर से जो कीच | हिंदी कविता

"ये अंतिम बार लिख रहा हूं.....समझ लो, दूर से जो कीचड़ दिख रहा हूं...समझ लो, फ़र्क नहीं पड़ेगा मुझे मालूम है तुम्हें अब मैं कमल सा खिल रहा हूँ....समझ लो, आज,कल और कल के बाद का दिन भी गुज़र जाएगा, कड़वा सच है हर वक्त के बाद कोई नया तुम्हें भा जाएगा....समझ लो, पर भीतर की उलझन से कैसे संवाद करोगे आईने के सामने तुम ख़ुद से कैसे बात करोगे ये अंतिम बार लिख रहा हूँ.......समझ लो, मैंने ख़ुद को खुली किताब सा दिखाया तुम्हें फिर भी न जाने क्यूँ फ़रेब सा नज़र आया तुम्हें समझ लो... जिस जिस ने भी मुझे देखा अपने सवाल मुझ पे दागे दुनियां के ऐसे रुख़ से ही हमने उनसे फ़ासले बना डाले।। ये अंतिम बार लिख रहा हूं.....समझ लो।। ©preetdas dewal"

 ये अंतिम बार लिख रहा हूं.....समझ लो,
दूर से जो कीचड़ दिख रहा हूं...समझ लो,
फ़र्क नहीं पड़ेगा मुझे मालूम है तुम्हें
अब मैं कमल सा खिल रहा हूँ....समझ लो,
आज,कल और कल के बाद का 
दिन भी गुज़र जाएगा,
कड़वा सच है हर वक्त के बाद 
कोई नया तुम्हें भा जाएगा....समझ लो,
पर भीतर की उलझन से कैसे संवाद करोगे
आईने के सामने तुम ख़ुद से कैसे बात करोगे
ये अंतिम बार लिख रहा हूँ.......समझ लो,
मैंने ख़ुद को खुली किताब सा दिखाया तुम्हें
फिर भी न जाने क्यूँ फ़रेब सा नज़र आया तुम्हें
समझ लो...
जिस जिस ने भी मुझे देखा अपने सवाल मुझ पे दागे
दुनियां के ऐसे रुख़ से ही हमने उनसे फ़ासले बना डाले।।
ये अंतिम बार लिख रहा हूं.....समझ लो।।

©preetdas dewal

ये अंतिम बार लिख रहा हूं.....समझ लो, दूर से जो कीचड़ दिख रहा हूं...समझ लो, फ़र्क नहीं पड़ेगा मुझे मालूम है तुम्हें अब मैं कमल सा खिल रहा हूँ....समझ लो, आज,कल और कल के बाद का दिन भी गुज़र जाएगा, कड़वा सच है हर वक्त के बाद कोई नया तुम्हें भा जाएगा....समझ लो, पर भीतर की उलझन से कैसे संवाद करोगे आईने के सामने तुम ख़ुद से कैसे बात करोगे ये अंतिम बार लिख रहा हूँ.......समझ लो, मैंने ख़ुद को खुली किताब सा दिखाया तुम्हें फिर भी न जाने क्यूँ फ़रेब सा नज़र आया तुम्हें समझ लो... जिस जिस ने भी मुझे देखा अपने सवाल मुझ पे दागे दुनियां के ऐसे रुख़ से ही हमने उनसे फ़ासले बना डाले।। ये अंतिम बार लिख रहा हूं.....समझ लो।। ©preetdas dewal

#kavita

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