मन्दं मन्दं पवनस्सरति,
अस्या भूम्यास्तापं हरति।
मेघो वर्षति सिंहो गर्जति,
मयूरनृत्यं मनो हर्षति।।
हवा मन्द गति से बह रही है और इस धरा के ताप को शोषित कर रही है मेघ बरस रहा है, सिंह गरज रहा है और मयूर का नृत्य सभी के मनों को आह्लादित कर रहा है ।
शनै: शनै: मण्डूक: कूर्दति,
कृषक: क्षेत्रे बीजं वपति।
कूपो भरति जन्तुश्चरति,
बालो नद्यां हर्षेण तरति।।
मेंढ़क धीरे धीरे कूर्दन कर रहा है,किसान खेत में बीज बो रहे हैं
वर्षा के द्वारा कुआं भरा जा रहा है पशु चर रहे हैं और बच्चे प्रमुदित होकर नदी में तैर रहे हैं।
पक्षी कूजति पिको गायति,
दृश्योऽयन्निश्चयो विभाति।
बाल: क्षिप्रं भवनं याति,
ग्वालो धेनुङ्गेहन्नयति।।
पक्षी कूजन में तल्लीन है कोयल गायन में संरत है बच्चे शीघ्रातिशीघ्र गृहप्रस्थान कर रहे हैं, ग्वाला भी गाय को लेकर वासस्थल पर जा रहा है
अहो यह दृश्य निश्चित ही सबके मनों को हरने वाली है।
कवि:-अभिषेककुमार:✍️✍️
©Abhishek Choudhary Sanskrit
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