कहीं रोशनी की हैं आहटें , कहीं सन्नाटे से पसरे हैं

"कहीं रोशनी की हैं आहटें , कहीं सन्नाटे से पसरे हैं फूलों की खुशबू है कहीं तो पतझर की कहीं खामोशी ; हर सांस पे पहरा है कहीं , कहीं ज़िंदगी की धूप है बदलते रहते हैं मिजाज- मौसम हो या के ज़िंदगी ।। ©ख़ुश्क आँसू"

 कहीं रोशनी की हैं आहटें ,
कहीं सन्नाटे से पसरे हैं 
 फूलों की खुशबू है कहीं
तो पतझर की कहीं खामोशी ;
हर सांस पे पहरा है कहीं ,
कहीं ज़िंदगी की धूप है
बदलते रहते हैं मिजाज- 
मौसम हो या के ज़िंदगी ।।

©ख़ुश्क आँसू

कहीं रोशनी की हैं आहटें , कहीं सन्नाटे से पसरे हैं फूलों की खुशबू है कहीं तो पतझर की कहीं खामोशी ; हर सांस पे पहरा है कहीं , कहीं ज़िंदगी की धूप है बदलते रहते हैं मिजाज- मौसम हो या के ज़िंदगी ।। ©ख़ुश्क आँसू

#moonlight

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