"अपना अपना उजाला अपने साथ लेकर आए हैं
मन का घोर अंधेरा फिर भी दूर नहीं कर पाए हैं
टूटे हुए ख्वाबों का बंटवारा करने आए है
कई कदम साथ चल के भी समझ नहीं पाए है
दुनिया से टकराते थे कभी एक दूसरे के लिए
अब अलग चलने को छटपटा रहे है किस लिए
दम्पतियों में भी वर्चस्व की होड़ इस कदर हावी है
खुल जाती है गंठबंधन की डोर जो गाजे-बाजे से बांधी है
बबली गुर्जर
©Babli Gurjar"