एक शोर दबा है रात के इन सन्नाटों में शाम के सिरहान | हिंदी शायरी

"एक शोर दबा है रात के इन सन्नाटों में शाम के सिरहाने तले गूंजने की फिराक में, और भी रोशन हो गया है अंधेरा लौ कम पड़ गयी है शायद चराग़ में, रात ढले तो बरसों हो गये फिर क्यों दूर तलक रोशनी का नामोनिशां नहीं, चारों ओर भय का माहौल मालूम होता है नफरत ने पैर पसारा है, कहीं भी फ़िज़ा नहीं, ठोकर लगी तो पता चला मोम क्या पत्थर क्या अब के मरहम न लगाया तो घाव ना बन जाये, पत्थर उछाला है कीचड़ में छीटें लाज़मी हैं धो लो कमीज़ इससे पहले की दाग ना बन जाये!।। @SuSHiL"

 एक शोर दबा है रात के इन सन्नाटों में
शाम के सिरहाने तले गूंजने की फिराक में,
और भी रोशन हो गया है अंधेरा
लौ कम पड़ गयी है शायद चराग़ में,
रात ढले तो बरसों हो गये फिर क्यों
दूर तलक रोशनी का नामोनिशां नहीं,
चारों ओर भय का माहौल मालूम होता है
नफरत ने पैर पसारा है, कहीं भी फ़िज़ा नहीं,
ठोकर लगी तो पता चला मोम क्या पत्थर क्या
अब के मरहम न लगाया तो घाव ना बन जाये,
पत्थर उछाला है कीचड़ में छीटें लाज़मी हैं
धो लो कमीज़ इससे पहले की दाग ना बन जाये!।।


@SuSHiL

एक शोर दबा है रात के इन सन्नाटों में शाम के सिरहाने तले गूंजने की फिराक में, और भी रोशन हो गया है अंधेरा लौ कम पड़ गयी है शायद चराग़ में, रात ढले तो बरसों हो गये फिर क्यों दूर तलक रोशनी का नामोनिशां नहीं, चारों ओर भय का माहौल मालूम होता है नफरत ने पैर पसारा है, कहीं भी फ़िज़ा नहीं, ठोकर लगी तो पता चला मोम क्या पत्थर क्या अब के मरहम न लगाया तो घाव ना बन जाये, पत्थर उछाला है कीचड़ में छीटें लाज़मी हैं धो लो कमीज़ इससे पहले की दाग ना बन जाये!।। @SuSHiL

गुलामी रूपी रात को तो ढले बरसों बीत गए हैं पर अब भी रोशनी की किरण नज़र नहीं आती है, एक ओर जहां देश तरक्की की सीढ़ियां चढ़ रहा हैं वहीं आपसी लड़ाई ने भय का माहौल गढ़ रखा है। नफरत पैर पसार रहा है, अभी बस खरोंच आई है तो मरहम लगाना उचित है , देर हुई तो कहीं नासूर घाव ना बन जाये, कीचड़ में पत्थर उछालना बेवकूफी होगी क्योंकि  छीटें खुद पर आना भी लाज़मी है, एक राष्ट्र बनकर, भाईचारे की भावना जगाना जरूरी है तभी देश भी आगे बढ़ेगा और लोगों में प्यार भी।।
जय हिंद..
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