रुजगार, महंगाई के मुद्दों को छोड़,
सिमट गया अख़बार तुम्हारी चोटी में!
©Santosh Sagar
उलझे हैं हम यार तुम्हारी चोटी में,
उलझा मेरा प्यार तुम्हारी चोटी में!
मार कराये यार तुम्हारे नखड़े और,
झुक जाये सरकार तुम्हारी चोटी में!
गज़रा,जुड़ा और लगाती हो आल्पीन,
कितने हैं किरदार तुम्हारी चोटी में!