सखी वैभव विलास के अति मोह में गांठ पड़ने लगी आपसी | हिंदी शायरी

"सखी वैभव विलास के अति मोह में गांठ पड़ने लगी आपसी रिश्तों की डोर में और अब तो खुले बगैर ही गांठ जल रही है सुलझने की बजाय सुलगने को मचल रही है राख में तब्दील होके भी अपने बल छोड़ जाएगी रस्सी रिश्ते की आंखों को सजल छोड़ जाएगी बबली भाटी बैसला ©Babli BhatiBaisla"

 सखी वैभव विलास के अति मोह में 
गांठ पड़ने लगी आपसी रिश्तों की डोर में 
और अब तो खुले बगैर ही गांठ जल रही है 
सुलझने की बजाय सुलगने को मचल रही है 
राख में तब्दील होके भी अपने बल छोड़ जाएगी
रस्सी रिश्ते की आंखों  को सजल छोड़ जाएगी
बबली भाटी बैसला

©Babli BhatiBaisla

सखी वैभव विलास के अति मोह में गांठ पड़ने लगी आपसी रिश्तों की डोर में और अब तो खुले बगैर ही गांठ जल रही है सुलझने की बजाय सुलगने को मचल रही है राख में तब्दील होके भी अपने बल छोड़ जाएगी रस्सी रिश्ते की आंखों को सजल छोड़ जाएगी बबली भाटी बैसला ©Babli BhatiBaisla

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