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सोता रहा शहर सारा सुकून से बेकरारी जागती रही जुनून में बबली भाटी बैसला ©Babli BhatiBaisla
Babli BhatiBaisla
17 Love
बढ़ चढ़कर भीख देने की होड़ समाज के लिए है भयंकर रोग अब अपने गुणगान की अंधी चाहत को छोड़ अनावश्यक भिक्षावृत्ति पर लगानी चाहिए रोक बबली भाटी बैसल ©Babli BhatiBaisla
20 Love
सुरमई शाम के हवाले पुराने मकान के नज़ारे बहुत कुछ छीन कर ले जाते जरूरत की जुगत के तक़ाज़े मन को मरोड़ कर चल दी सब-कुछ छोड़ कर चल दी ना वो जोश ही मन में बढ़ा है बोझ ही मन में नजर फिर ढूंढती वही गलियां वो नवयौवन की अठखेलियां काश फुर्सत में मिल जाया करती वही बचपन की सखी सहेलियां बबली भाटी बैसला ©Babli BhatiBaisla
22 Love
धूप में चले बगैर सूरज की तपिश का अंदाजा नहीं होता और दोस्तो प्यार में पड़े बगैर कोई आवारा नहीं होता ख्यालों में ख्वाबों में भी जंजीर अच्छी नहीं लगती ध्यान से देखा किसी की मोहब्बत सच्ची नहीं लगती मयंक बैसला ©Babli BhatiBaisla
15 Love
देश हित भूलकर कमाल के खुदगर्ज रहे वो बेहिसाब चाटूकार रजवाड़े सीखा गए नेताओं को खुद का विकास दिल्ली में जितनी भी रियासतों के हाउस है साहब अंग्रेजों से ज्यादा तो उन चम्मचों की नजरे थी खराब अपनी ही जनता पर अपनी सेनाओं से करवाते अत्याचार खूब होड़ मची रहती ब्रिटिश सरकार की नज़रों में रहने की अंग्रेज़ चले गए पर हमारे गले हड्डी लटका गए अंग्रेजी की बबली भाटी बैसला ©Babli BhatiBaisla
18 Love
हठ जननी से कर बैठते हैं अबोध नन्हे अनेक भगवन को कई नहीं जानते मां को जाने हरेक ममता की गहराई नापते कभी स्वयं प्रभु नहीं देख रूलाने वाले बालक के भी मां नहीं पाती आंसू देख बबली भाटी बैसला ©Babli BhatiBaisla
21 Love
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