पुराने दिनों के विद्यालय उन दिनों की बात ही न क | हिंदी कविता Video

" पुराने दिनों के विद्यालय उन दिनों की बात ही न कीजिए जब झोला उठाए, पहुंच गए विद्यालय जब झोला उठाए, पहुंच गए घर बस रास्ते होते थे अलग अलग बस बहाने होते थे अलग अलग जाते थे तो एक बड़े से गेट से निकलते थे अलग अलग रास्तों से कहीं दिवाल फान कर तो कहीं कटीले तारों के बीच से कभी खुद का पेट दुख रहा है के बहाने से कभी दोस्त का दुख रहा है के बहाने से हद तो तब कर देते थे जब पापा मम्मी बीमार ही हो जाते थे उससे भी ज्यादा हद तब करके निकल जाते थे जब अपनी नाना नानी दादा दादी को ही मार देते थे आधे दिन की छुट्टी के लिए मार भी मिलती थी मास्टर से बहुत जब मौका मिलता था मौका फिर से कोई बहाना तरकीब निकाल निकल लेते थे वो दिन बड़े सुहाने थे न बोझ था न तनाव था जितनी हरियाली खेतो में थी उतनी हरियाली हमारे मनो में थी एक दूसरे के घर वालों को हर रोज मारकर हम सभी दोस्त एक ही रिक्शा में सवार हो घर जाते थे –अjay नायक ‘वशिष्ठ’ ©AJAY NAYAK "

पुराने दिनों के विद्यालय उन दिनों की बात ही न कीजिए जब झोला उठाए, पहुंच गए विद्यालय जब झोला उठाए, पहुंच गए घर बस रास्ते होते थे अलग अलग बस बहाने होते थे अलग अलग जाते थे तो एक बड़े से गेट से निकलते थे अलग अलग रास्तों से कहीं दिवाल फान कर तो कहीं कटीले तारों के बीच से कभी खुद का पेट दुख रहा है के बहाने से कभी दोस्त का दुख रहा है के बहाने से हद तो तब कर देते थे जब पापा मम्मी बीमार ही हो जाते थे उससे भी ज्यादा हद तब करके निकल जाते थे जब अपनी नाना नानी दादा दादी को ही मार देते थे आधे दिन की छुट्टी के लिए मार भी मिलती थी मास्टर से बहुत जब मौका मिलता था मौका फिर से कोई बहाना तरकीब निकाल निकल लेते थे वो दिन बड़े सुहाने थे न बोझ था न तनाव था जितनी हरियाली खेतो में थी उतनी हरियाली हमारे मनो में थी एक दूसरे के घर वालों को हर रोज मारकर हम सभी दोस्त एक ही रिक्शा में सवार हो घर जाते थे –अjay नायक ‘वशिष्ठ’ ©AJAY NAYAK

#पुरानेदिनकेविद्यालय
पुराने दिनों के विद्यालय

उन दिनों की बात ही न कीजिए
जब झोला उठाए, पहुंच गए विद्यालय
जब झोला उठाए, पहुंच गए घर
बस रास्ते होते थे अलग अलग
बस बहाने होते थे अलग अलग

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