जिस डगर ना दिखे तू मंजिल पे फ़कर कहां होगा , बना त

"जिस डगर ना दिखे तू मंजिल पे फ़कर कहां होगा , बना तो दूँ तेरे बिना मकान मगर घर कहाँ होगा, तिल तिल कर निकलती जान पल पल की दूरी मे, अगले इतवार तक सुनते जाओ इस से सबर कहाँ होगा, दिल दिया हैं जिसको खुदा उसी को मान बैठे हैं, इस पत्थर की मूरत से हमारा अब बसर कहाँ होगा.??"

 जिस डगर ना दिखे तू मंजिल पे फ़कर कहां होगा , 
बना तो दूँ तेरे बिना मकान मगर घर कहाँ होगा,  
तिल तिल कर निकलती जान पल पल की दूरी मे,
अगले इतवार तक सुनते जाओ इस से सबर कहाँ होगा, 
दिल दिया हैं जिसको खुदा उसी को मान बैठे हैं,
इस पत्थर की मूरत से हमारा अब बसर कहाँ होगा.??

जिस डगर ना दिखे तू मंजिल पे फ़कर कहां होगा , बना तो दूँ तेरे बिना मकान मगर घर कहाँ होगा, तिल तिल कर निकलती जान पल पल की दूरी मे, अगले इतवार तक सुनते जाओ इस से सबर कहाँ होगा, दिल दिया हैं जिसको खुदा उसी को मान बैठे हैं, इस पत्थर की मूरत से हमारा अब बसर कहाँ होगा.??

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