अपनों ने अपनाने से मना कर दिया ,
ऐ ग़रीबी तूने जीना सज़ा कर दिया ।
किसकी तरफ़ देखें,किसे अपना कहें,
अब आईने ने भी मुझे तन्हा कर दिया।
आते है पेश जैसेे की मालूम नहीं कुछ ,
मैंने ही पूछ कर हाल ख़ता कर दिया ।
सहारा नहीं,बस साथ ही तो माँगा था ,
इतनी सी बात पर उसने जुदा कर दिया।
भरोसे जिसके जलाये थे दीप घरों में,
शाम ढलते ही उसने अंधेरा कर दिया।
ज़िल्लत सी लगने लगी है जिंदगी"कुमार"
लिख कर फिर एक दर्द हवा कर दिया।।