हे मेघ! चला तू जल लेकर क्या थका नही तू कैसा है?
तूने उसको श्रंगार दिया है, जो दिनकर से रोषित है।
ले देख आज वो चली गई तेरे हाथों की सब बूंदे।
वो भूल गई उपकार सभी, पर तू क्यों रोता अवनी पे।।
तू रोता है या ये जल है, जो तुझे छोड़ कर आया है?
तेरे सारे उपकारों का, ये कैसा बदला लाया है?
जिसको तू जीवन देने, उस सूरज से भिड़ जाता है।
ले देख तुझे अश्रु पूरित कर धरती में मिल जाता है।।
अभिषेक कुमार जैन
.
©Abhishek Jain
#barish