Abhishek Jain

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abhishek Kumar jain devraha dis.. tikamgarh m.p. 2nd year study in jaipur rajasthan... 7610009487

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#कविता #WistfulTalks

#WistfulTalks

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ये सब मधुशाला के पथ हैं, आओ मैं यहां से ले चलता। कब तक यूं रोना रोओगे, क्यों हट करता न घर चलता ।। मत कहो शब्द तुम एक मुझे ये लो पीलो आँखें मूदे। गर गम न मिट जाए सारे तो कहना कैसा ये मधुप्याला ।। अभिषेक कुमार जैन . ©Abhishek Jain

#मधुशाला #कविता #parent  ये सब मधुशाला के पथ हैं, आओ मैं यहां से ले चलता।
कब तक यूं रोना रोओगे, क्यों हट करता न घर चलता ।।
मत कहो शब्द तुम एक मुझे ये लो पीलो आँखें मूदे।
गर गम न मिट जाए सारे तो कहना कैसा ये मधुप्याला ।।

अभिषेक कुमार जैन















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©Abhishek Jain

हे मेघ! चला तू जल लेकर क्या थका नही तू कैसा है? तूने उसको श्रंगार दिया है, जो दिनकर से रोषित है। ले देख आज वो चली गई तेरे हाथों की सब बूंदे। वो भूल गई उपकार सभी, पर तू क्यों रोता अवनी पे।। तू रोता है या ये जल है, जो तुझे छोड़ कर आया है? तेरे सारे उपकारों का, ये कैसा बदला लाया है? जिसको तू जीवन देने, उस सूरज से भिड़ जाता है। ले देख तुझे अश्रु पूरित कर धरती में मिल जाता है।। अभिषेक कुमार जैन . ©Abhishek Jain

#कविता #barish  हे मेघ! चला तू जल लेकर क्या थका नही तू कैसा है?
तूने उसको श्रंगार दिया है, जो दिनकर से रोषित है।
ले देख आज वो चली गई तेरे हाथों की सब बूंदे।
वो भूल गई उपकार सभी, पर तू क्यों रोता अवनी पे।।

तू रोता है या ये जल है, जो तुझे छोड़ कर आया है?
तेरे सारे उपकारों का, ये कैसा बदला लाया है?
जिसको तू जीवन देने, उस सूरज से भिड़ जाता है।
ले देख तुझे अश्रु पूरित कर धरती में मिल जाता है।।

अभिषेक कुमार जैन









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©Abhishek Jain

#barish

5 Love

दादा का संकल्प पुंज, स्मारक से उस मारग तक। क्या लिख सकती मेरी ये लेखनी स्मारक को शब्दों में? क्या कभी पिरोया जा सकता मोती माला को क्षण भर में, क्या कहें शब्द फीके लगते,जिसकी गौरव गाथा लिखने में, क्या लड़ सकते अज्ञान अंधेरे, जब सूरज आया हो रण में। क्या इन दीवारों की शोभा, कहलाता है ये स्मारक? क्या भाषा, बोली का संगम मिलना है प्यारा स्मारक? क्या इस छत के नीचे विद्वानों से भरा भवन है स्मारक? है आत्मानुभूति और तत्त्वज्ञान, बस वो है मेरा स्मारक। जिसका संरक्षण गुरु करते, वो बीज एक दिन फलता है। हो भारी बारिश या तेज प्रबल, सब हंसते हंसते सहता है। हम उन गुरुओं की छांव में है, जिनका रग रग भींगा रस से, क्या कर सकता अज्ञान प्रबल,जहां समयसार के हो चर्चे । ये वही धरा है जिसपर सींचा जाता है, विद्वानों को। ये वही धरा है जिसपर टोडरमल जैसे विद्वान हुए, ये वही धरा है जो युग युग से जैनों की काशी कहलाई, ये वही धरा है जहां चमकता स्मारक सा अवतारी । है लक्ष्य हमारा जिनवाणी को घर घर तक पहुंचना है, पंचम काल के अंत नहीं उसके आगे भी जाना है। अब ध्वजा हमें आ मिली इसे अब गगन चुम्बी लहराना है, दादा के उस पावन प्रण को अब हमे आगे ले जाना है। . ©Abhishek Jain

#कविता  दादा का संकल्प पुंज,                           
स्मारक से उस मारग तक।

क्या लिख सकती मेरी ये लेखनी स्मारक को शब्दों में?
क्या कभी पिरोया जा सकता मोती माला को क्षण भर में,
क्या कहें शब्द फीके लगते,जिसकी गौरव गाथा लिखने में,
क्या लड़ सकते अज्ञान अंधेरे, जब सूरज आया हो रण में।

क्या इन दीवारों की शोभा, कहलाता है ये स्मारक?
क्या भाषा, बोली का संगम मिलना है प्यारा स्मारक?
क्या इस छत के नीचे विद्वानों से भरा भवन है स्मारक?
है आत्मानुभूति और तत्त्वज्ञान, बस वो है मेरा स्मारक।

जिसका संरक्षण गुरु करते, वो बीज एक दिन फलता है।
हो भारी  बारिश या तेज प्रबल, सब हंसते हंसते सहता है।
हम उन गुरुओं की छांव में है, जिनका रग रग भींगा रस से,
क्या कर सकता अज्ञान प्रबल,जहां समयसार के हो चर्चे ।

ये वही धरा है जिसपर सींचा जाता है, विद्वानों को।
ये वही धरा है जिसपर टोडरमल जैसे विद्वान हुए,
ये वही धरा है जो युग युग से जैनों की काशी कहलाई,
ये वही धरा है जहां चमकता स्मारक सा अवतारी ।

है लक्ष्य हमारा जिनवाणी को घर घर तक पहुंचना है,
पंचम काल के अंत नहीं उसके आगे भी जाना है।
अब ध्वजा हमें आ मिली इसे अब गगन चुम्बी लहराना है,
दादा के उस पावन प्रण को अब हमे आगे ले जाना है।








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©Abhishek Jain

दादा का संकल्प पुंज, स्मारक से उस मारग तक। क्या लिख सकती मेरी ये लेखनी स्मारक को शब्दों में? क्या कभी पिरोया जा सकता मोती माला को क्षण भर में, क्या कहें शब्द फीके लगते,जिसकी गौरव गाथा लिखने में, क्या लड़ सकते अज्ञान अंधेरे, जब सूरज आया हो रण में। क्या इन दीवारों की शोभा, कहलाता है ये स्मारक? क्या भाषा, बोली का संगम मिलना है प्यारा स्मारक? क्या इस छत के नीचे विद्वानों से भरा भवन है स्मारक? है आत्मानुभूति और तत्त्वज्ञान, बस वो है मेरा स्मारक। जिसका संरक्षण गुरु करते, वो बीज एक दिन फलता है। हो भारी बारिश या तेज प्रबल, सब हंसते हंसते सहता है। हम उन गुरुओं की छांव में है, जिनका रग रग भींगा रस से, क्या कर सकता अज्ञान प्रबल,जहां समयसार के हो चर्चे । ये वही धरा है जिसपर सींचा जाता है, विद्वानों को। ये वही धरा है जिसपर टोडरमल जैसे विद्वान हुए, ये वही धरा है जो युग युग से जैनों की काशी कहलाई, ये वही धरा है जहां चमकता स्मारक सा अवतारी । है लक्ष्य हमारा जिनवाणी को घर घर तक पहुंचना है, पंचम काल के अंत नहीं उसके आगे भी जाना है। अब ध्वजा हमें आ मिली इसे अब गगन चुम्बी लहराना है, दादा के उस पावन प्रण को अब हमे आगे ले जाना है। . ©Abhishek Jain

14 Love

गर आज नहीं तो कल होगी, वो रिमझिम बारिश ज्ञान मयी। इक बदली भी गर छा जाये, तो ढह जाये मिथ्या नगरी। कैसा प्रपंच कैसी माया, कैसा धन ये कैसी काया। क्षण भंगुर इस जीवन में क्या? मैं एक अनादि चितवाला।। ✍🏻 अभिषेक कुमार जैन . ©Abhishek Jain

#कविता #candle  गर आज नहीं तो कल होगी, वो रिमझिम बारिश ज्ञान मयी।
इक  बदली  भी गर छा जाये,  तो ढह  जाये  मिथ्या नगरी।
कैसा  प्रपंच  कैसी माया,  कैसा धन ये  कैसी काया।
क्षण भंगुर इस जीवन में क्या? मैं एक अनादि चितवाला।।


✍🏻 अभिषेक कुमार जैन











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©Abhishek Jain

#candle

11 Love

आ. श्री डॉ.शांतिकुमार जी भाईसाहब आपका बताता हर शब्द मोती सा लगता है।। यूं तो कई गुरुओं ने पढ़ाया, उनने भी वही सिखाया जो आपने बताया , पर करीब से देखा तो कुछ अलग सा लगता है। आपका बताया हर शब्द......... कुछ नया सा तेज लगता है, माना शैली कुछ- कुछ गंभीर सी है, पर आपसे सुनना बहुत अच्छा लगता है, यूं तो कई बातें बताते हैं लोग, पर आप बताये तो अच्छा लगता है। आपका बताया हर शब्द…..…. जीवन जिनका स्वच्छ आईना सा लगता है, जो अंदर है, बाहर भी वही झलकता है, हमनें कुछ अंतर देखा है आपमें, बाहर भले ही कुछ हों आप, पर अंदर से स्नेह उमड़ता रहता है। आपका बताया कर शब्द....…. ✍🏻अभिषेक कुमार जैन . ©Abhishek Jain

#Teachersday  आ. श्री डॉ.शांतिकुमार जी भाईसाहब

आपका बताता हर शब्द मोती सा लगता है।।                   
यूं तो कई गुरुओं ने पढ़ाया,                                             
उनने भी वही सिखाया जो आपने बताया ,                  
पर करीब से देखा तो कुछ अलग सा लगता है।                                                   आपका बताया हर शब्द.........                                                                   
 
कुछ नया सा तेज लगता है, 
माना शैली कुछ- कुछ गंभीर सी है,
पर आपसे सुनना बहुत अच्छा लगता है,
यूं तो कई बातें बताते हैं लोग,
पर आप बताये तो अच्छा लगता है।
आपका बताया हर शब्द…..….                       

जीवन जिनका स्वच्छ आईना सा लगता है,
जो अंदर है, बाहर भी वही झलकता है,
हमनें कुछ अंतर देखा है आपमें,
बाहर भले ही कुछ हों आप,
पर अंदर से स्नेह उमड़ता रहता है।
आपका बताया कर शब्द....….

                              ✍🏻अभिषेक कुमार जैन





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©Abhishek Jain

#Teachersday

14 Love

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